Mansarovar Subah Jal Hansa kaylee karahi mein kaun sa Alankar hai
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मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं। मुकताफल मुकता ... पूरे दोहे में 'रूपक' अलंकार है। हंस ...
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मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताहल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं : इस दोहे में यमक अलंकार है।
- यहां मुकता शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हुआ है।
- जब काव्य में अथवा किसी वाक्य में एक ही शब्द एक से अधिक बार आए तो वहां यमक अलंकार होता है।
- यह संत कबीर का दोहा है।
- संत कबीर ने जीवात्मा को हंसा कहकर संबोधित किया है। आत्मा जब परमात्मा से मिलती है हो उसे पूर्ण आनंद की प्राप्ति होती है। यह जीवात्मा रूपी हंस प्रसन्न होकर मान सरोवर में अलग अलग खेल खेलती है। विचित्र करतब करती है। पक्षी जिस प्रकार तालाब के किनारे स्वय को स्वतंत्र समझकर करतब करते है।
- कबीर जी कहते है कि हृदय रूपी मान सरोवर में आत्मा अमृत रस पी रही है। वह अमृत रूपी मोतियो को चुग रही है। उसे मोतियों के अतिरिक्त कुछ भी अच्छा नहीं लगता ।
- आत्मा को किसी की परतंत्रता की आवश्यकता नहीं होती।
#SPJ3
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