manushya ke vyahvar mein hi dusro ko virodhi bana lene wale dosh hote hai yah bhavarth kabir ke jis dohe mein vyakat hua hai vah doha likhiye
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heya mate!
here is ur ans...
>> मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेने वाले दोष होते हैं यह बात कबीर की निम्नलिखित साखी से स्पष्ट होती है - आवत गारी एक है , उलटत होइ अनेक। कह कबीर नहिं उलटिए , वही एक की एक।। इस साखी में कवि ने लोगों को सामाजिक मानदंडों से अवगत करवा कर उन्हें सचेत करने का प्रयत्न किया है।
hope it helps...❤
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