मरुस्थलीय वनस्पति के क्या लक्षण है
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मरुस्थलीकरण ज़मीन का क्षरण है, जो शुष्क और अर्द्ध-नम क्षेत्रों में विभिन्न कारकों की वजह से होता है: जिनमें विविध जलवायु और मानवीय गतिविधियां[1] भी शामिल है। मरुस्थलीकरण मुख्यतः मानव निर्मित गतिविधियों[कृपया उद्धरण जोड़ें] के परिणाम स्वरूप होता है: विशेष तौर पर ऐसा अधिक चराई, भूमिगत जल के अत्यधिक इस्तेमाल और मानवीय एवं औद्योगिक कार्यों[कृपया उद्धरण जोड़ें] के लिए नदियों के जल का रास्ता बदलने की वजह से है और यह सारी प्रक्रियाएं मूलतः अधिक आबादी[कृपया उद्धरण जोड़ें] की वजह से संचालित होती हैं।
मरुस्थलीकरण का सबसे गहरा प्रभाव है जैव विविधता और उत्पादक क्षमता में कमी, उदाहरण के लिए संक्रमण से झाड़ियों से भरे ज़मीनों के गैर देशीय चरागाह[कृपया उद्धरण जोड़ें] में तब्दील होना. उदाहरण के लिए, दक्षिणी कैलिफोर्निया के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में, कई तटीय वृक्षों और झाड़-झंखाड़ों वाले पारितंत्रों की जगह नियमित अंतराल पर आग की वापसी से गैर देशीय, आक्रामक घास भर गयी हैं। इसकी वजह से वार्षिक घास की ऐसी श्रृंखला पैदा हो सकती है जो कभी मूल पारितंत्र में पाये जाने वाले जानवरों को सहारा नहीं दे सकती[कृपया उद्धरण जोड़ें]. मेडागास्कर की केंद्रीय उच्चभूमि के पठार[कृपया उद्धरण जोड़ें] में, स्वदेशी लोगों द्वारा काटने और जलाने की कृषि पद्धति की वजह से पूरे देश का 10% हिस्सा मरुस्थलीकरण में तब्दील हो गया है[कृपया उद्धरण जोड़ें].
मरुस्थलीय वनस्पति के लक्षण इस प्रकार हैं...
- मरुस्थलीय वनस्पति मरुस्थल यानी रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाई जाने वाली वनस्पति होती है। यह वनस्पति ऐसी जगह पर बहुतायत में पाई जाती है, जहां पर 70 सेमी से कम वर्षा होती है। क्योंकि यह वनस्पति जल की कमी या कम वर्षा वाले क्षेत्र में पाई जाती हैं, इसलिए इन वनस्पतियों की संरचना ऐसी होती है कि यह जल की कमी को सहन कर सकें। अर्थात मरुस्थल के शुष्क वातावरण में स्वयं को ढाल सकें।
- इन वनस्पतियों में अधिकतर वनस्पतियों में जल का अवशोषण करने के लिए इनका मूल तंत्र यानि जड़ें बहुत विकसित और गहराई तक होती हैं।
- कुछ मरुस्थलीय वनस्पतियों में इनके तने भी जमीन के अंदर होते हैं। जैसे ऐलॉय, ऐगेव आदि।
- कुछ मरुस्थलीय वनस्पतियों में उनके विकास अवस्था में शुरू में पत्तियां गायब हो जाती हैं। बाद में इन वनस्पतियों के थोड़े विकसित होने पर पत्तियां दिखाई देती हैं।
- कुछ मरुस्थलीय वनस्पतियों में पत्तियां एकदम ही नहीं होती। जेसे नागफनी में पत्तियां बाद में कुटक में बदल जाती हैं। इस तरह से इन पौधों में वाष्पोत्सर्जन की दर कम होती है।
- मरुस्थलीय वनस्पतियों में सामान्यता उनका पर्णक का आकार छोटा होता है। जैसे खेजड़ी, बबूल आदि।
- कुछ पौधों कुछ वनस्पतियों के पर्णक बेहद छोटे आकार के होते हैं, लेकिन इनका प्राक्ष छोटा और मोटा होता है। यह पर्णक पतियों को तेज धूप से सुरक्षित रखने का कार्य करते हैं।
- कुछ मरुस्थलीय वनस्पतियां की पत्ती कांटों में बदल जाती है। जैसे खेजड़ी आदि।
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