Mashin yug vardan ya abhisha
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पहले अक्सर ऐसा हुआ करता था। दूसरे शहर में किसी के घर जाना है। सब कुछ पहले से तय है। निश्चित दिन आप वहां पहुंचे। पर ये क्या? उस घर पर तो ताला लगा हुआ है! आप हैरान-परेशान! अब क्या करें? कुछ देर इंतजार कर लें। शायद यहीं कहीं गए हों। आखिर आप किसी पड़ोसी से पूछते हैं। वह बताता कि गांव से कुछ बुरी खबर आई और वे सब अचानक कल रात ही चले गए। अब इस पर ना तो उनका बस था, ना ही आपका। वक्त, पैसे और मेहनत खराब करके आप अपना सा मुंह लिए लौट जाते। चाहे आपके और उनके पास लैंडलाइन फोन था और सुबह निकलने से पहले आपने उन्हें फोन किया भी था। घंटी बजती रही थी। आपने सोचा होगा कि कहीं पास में ही गए होंगे वे। और बहुतों के पास तो फोन भी नहीं होते थे। खैर! आपका इस पर कोई बस नहीं चलता था।
आज चलता है। मोबाइल फोन की वजह से। अब तो करीब सबके पास मोबाइल फोन होते हैं। आप एक दिन पहले फोन करके कन्फर्म कर लेते हैं कि कल आपको जहां जाना है, उस प्रोग्राम में कोई बदलाव तो नहीं है। अपने घर से चलने से पहले फिर रिंग करके बोल देते हैं कि मैं आ रहा हूं। उनके घर के पास पहुंचकर एक बार फिर… ‘बस पहुंच ही रहा हूं कुछ मिनट में।’
दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों और दूसरे बड़े शहरों में तो मोबाइल फोन बहुत काम आता है। एक ही शहर में होते हुए आजकल दूरियां बहुत बढ़ गईं हैं। पढ़ाई-लिखाई और काम-काज की वजह से काफी दूर-दूर तक जाना पड़ता है। एक ही शहर में। इसकी वजह से, अपनों से भी मिलना-जुलना बेहद कम हो गया है। ऐसे में, मोबाइल फोन ही कनेक्टेड रखता है।
सचमुच, मोबाइल फोन बड़े काम की चीज है।
लेकिन क्या सचमुच?
शायद नहीं।
यह आपका सबसे अच्छा दोस्त है। शायद दुश्मन भी। इसने तमाम फायदों के बावजूद आपसे आपकी निजता छीन ली है।
आप ऑफिस में अपने बॉस से किसी प्रॉजेक्ट पर बात कर रहे हैं। आपका मोबाइल बजता है… घर से पत्नी पूछ रही है, गणपति उत्सव वाले चंदा लेने आए हैं। कितना दूं?
आप अपनी पत्नी से रोमांटिक बात कर रहे हैं। आपका मोबाइल बजता है… बॉस पूछ रहा है, प्रॉजेक्ट की डेडलाइन याद है ना?
आप अपने परिवार के साथ मल्टीप्लेक्स में मूवी देख रहे हैं। आपका मोबाइल बजता है…
आप बरसों बाद मिले दोस्त से बचपन की यादें ताजा कर रहे हैं। आपका मोबाइल बजता है…
आप ड्राइव कर रहे हैं। आपका मोबाइल बजता है…
आप खचाखच भरी ट्रेन या बस में चढ़ने की जद्दोजहद कर रहे हैं। आपका मोबाइल बजता है…
आप बिजली का बिल जमा करने के लिए डेढ़ घंटे लाइन में लगकर काउंटर तक पहुंचते हैं। आपका मोबाइल बजता है…
आपका किसी से झगड़ा हो रहा है। आपका मोबाइल बजता है…
दिन भर की मेहनत के बाद टीवी देखते हुए आप बहुत चाव से अपने परिवार के साथ डिनर कर रहे हैं। आपका मोबाइल बजता है…
सुबह को आप ब्रश या शेव कर रहे हैं। आपका मोबाइल बजता है…
आपको जोर से सू-सू, पॉटी आयी है। आपका मोबाइल बजता है…
यानी मोबाइल आपका चिर-साथी बन गया है। यह शाश्वत है। सार्वभौमिक है। सर्वव्यापी है। आप इसे कोसते भी रहते हैं, पर उसके बिना रह भी नहीं सकते।
पर यह सिर्फ आपकी ही निजता में हस्तक्षेप नहीं करता। इसके जरिये आप भी दूसरों की निजता को भंग करते है। मुंबई में ट्रेन में सफर करते समय पहले लोग एक-दूसरे से बतियाते रहते थे। अब मोबाइल कान पर लगाए फोनियाते रहते हैं।
‘रिलायंस 5 रुपये गिरे तो 50 ले लो।’
‘मेरा 25 टाटा मोटर्स निकाल दो।’
‘सेठ, ट्रेन लेट चल रही है। बस 15 मिनट में आपके पास पहुंच रहा हूं।’
‘हां, अड्रेस लिखो। …गणेश मंदिर के बाजू वाली गली… मालाड वेस्ट।’
‘हलो… हलो… आपकी आवाज नहीं आ रही।’
‘फिर फोन करता हूं। मेरी बैटरी लो है।’
‘आज देर से घर आऊंगा। डिनर बाहर ही कर लूंगा। तुम लोग खा लेना।’
‘क्या बात है, दो दिन से कॉलेज नहीं आई? सच, एक भी लेक्चर में मन नहीं लगा।’
‘सर, आज ऑफिस नहीं आऊंगा। बेटी के ऐडमिशन की लास्ट डेट है।’
‘आज शाम को मूवी का प्रोग्राम है। शार्प 5.30 को इरोस पे मिल।’
‘फोन रख। बोला ना, फोन रख बे। नहीं तो आके दूंगा कान के नीचे दो।’
‘आपको माल भेज दिया है। हाईवे पर ट्रैफिक में फंसा है ट्रक। पहुंच जाएगा दो घंटे में।’
हर तरह की बातचीत होती रहती है। ट्रेन में वैसे ही बहुत भीड़ होती है। मोबाइल फोन पर हो रही बातचीत से डिब्बों के अंदर शोर का डेसिबल बहुत बढ़ जाता है। इससे लोग चिड़चिड़े हो रहे हैं। डिप्रेशन के रोगी हो रहे हैं। बात-बात पर धीरज खो बैठते हैं।
और पिछले महीने तो मोबाइल फोन के कारण एक दर्दनाक हादसा ही हो गया। मैं दादर स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहा था। तेज बारिश हो रही थी। रेन कोट पहने एक लड़का ‘हैंड्स फ्री’ होकर मोबाइल पर या तो बात कर रहा था, या म्यूजिक सुन रहा था। आती हुई ट्रेन की ओर उसकी पीठ थी। प्लेटफॉर्म पर खड़े लोग बहुत चिल्लाए, लेकिन उस तक आवाज ही नहीं पहुंची। बाहरी आवाजों को तो उसने ब्लॉक कर रखा था… ट्रेन की टक्कर से वह पटरी पर गिरा और कट गया।
अब कोई बताए कि क्या टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करते समय इतना बेखबर हो जाना चाहिए? क्या टेक्नॉलजी का दास बन जाना चाहिए?
मोबाइल फोन के हरदम इस्तेमाल और उससे जुड़े हादसों को देखकर बचपन में लिखा एक निबंध याद आता है-
‘विज्ञान वरदान है या अभिशाप’।
bro Hope this helps u.....