मत समझो, जीवन खेल, खिलौना है जगती, यों खिला-पिलाकर कालकन्या क्या कहती है, बस एक खिलाड़ी हो तुम ही जीनेवाले। हे क्रूर काल, इस नरम कौर का चयन करो। मत समझो जीवन भोग और भोग्या धरती, हो सावधान, पहले अपना अध्ययन करो। इस प्याऊ पर हो एक तुम्हीं पीनेवाले। क. खेल, खिलौना व खिलाड़ी का प्रयोग किन संदर्भो में आया है? हम धरती को क्या मान बैठते हैं? क्यों? ख. ग. क्रूर किसे कहा गया है और क्यों? घ. कालकन्या से कवि का इशारा किस ओर है?
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हम इस धरती को खेल खिलौना समझ बैठते हैं क्योंकि हम बिना सोचे समझे धरती के साथ खिलवाड़ करते हैं
काल को क्रूर कहा गया है।
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