मथुरा के कला स्कूल में मूर्तियाँ बनाने के लिए किसका प्रयोग किया गया?
A. संगमरमर
B. स्टेट स्टोन
C. ग्रेनाइट
D. लाल बालू का पत्थर
Answers
the correct answer is option D
लाल बालू का पत्थर
लगभग तीसरी शती के अन्त तक यक्ष और यक्षियों की प्रस्तर मूर्तियाँ उपलब्ध होने लगती हैं।[2] मथुरा में लाल रंग के पत्थरों से बुद्ध और बोद्धिसत्व की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं।[3] महावीर की मूर्तियाँ भी बनीं। मथुरा कला में अनेक बेदिकास्तम्भ भी बनाये गये। यक्ष यक्षिणियों और धन के देवता कुबेर की मूर्तियाँ भी मथुरा से मिली हैं। इसका उदाहरण मथुरा से कनिष्क की बिना सिर की एक खड़ी प्रतिमा है। मथुरा शैली की सबसे सुन्दर मूर्तियाँ पक्षियों की हैं जो एक स्तूप की वेष्टणी पर खुदी खुई थी। इन मूर्तियों की कामुकतापूर्ण भावभंगिमा सिन्धु में उपलब्ध नर्तकी की प्रतिमा से बहुत कुछ मिलती जुलती है।
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Option 【 D】 is your correct answer . बलुआ पत्थर में वे ही धात्विक तत्व हाते हैं, जो बालू में। स्फटिक की बहुतायत होती है, जिसके साथ प्राय: फ़ेल्सपार तथा कभी-कभी श्वेत अभ्रक भी होता है। कभी कभी पत्थर की विभिन्न परतों के बीच में अभ्रक की तह सी जमी हुई मालूम पड़ती है। खान से पत्थर निकालने में इस तह का महत्वपूर्ण योगदान है। इसी के कारण पत्थर की पतली परतें निकाली जा सकती हैं, जो फर्श बनाने के काम आती हैं। योजक पदार्थ प्राय: बारीक कैल्सिडानी सिलिका होता है, किंतु कभी कभी मूल स्फटिक भी योजक का काम करता है। ऐसी दशा में शिला स्फटिक जैसी तैयार होती है। कैल्साइट, ग्लॉकोनाइट, लौह ऑक्साइड, कार्बनीय पदार्थ और अन्य अनेक प्रकार के पदार्थ भी जोड़ने का काम करते हैं, तथा अपना अपना विशिष्ट रंग प्रदान करते हैं, जैसे ग्लॉकोनाइट (glauconite) वाली शिलाएँ हरी और लोहेवाली लाल, भूरी या धूसर होती हैं। जब योजक पदार्थ चिकनी मिट्टी होता है, तब शिला प्राय: श्वेत या धूसर वर्ण की होती है और अत्यंत दृढ़ता से जमी हुई होती है।