मधुर विश्रांत और एकांत जगत का सुलझा हुआ रहस्य यह संबोधन किसके लिए है
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यह पद जयशंकर प्रसाद के कामायनी महाकाव्य के श्रद्धा से लिया गया है जिसमें श्रद्धा एक तरुणी होती है जो मनु को एकांत बैठा देख कर उससे अकेले बैठ ने के कारण पूछती है...
"तुम्हें देख कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे तुम कोई बड़ा परिश्रम करके थके बैठे हो, तुम्हें देख कर यह लगता है विनाश के पश्चात सृष्टि में कौन बचा है?, इस रहस्य का उद्घाटन तुम से हो रहा है "
अतः ये उक्ति श्रद्धा ने मनु (अर्थात मन) को संबोधित करते हुए कहा है
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