Social Sciences, asked by vaachal017, 6 months ago

मध्य काल के अंत में ऐसी क्या बात है जिसकी कानून समाज में बदलाव संभव हुआ ?​

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Answered by Anonymous
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Answer:

मध्य काल के अंत में कानून समाज में बदलाव संभव हुआ

Explanation:

सामाजिक सन्दर्भों में समानता (equality) का अर्थ किसी समाज की उस स्थिति से है जिसमें उस समाज के सभी लोग समान (अलग-अलग नहीं) अधिकार या प्रतिष्ठा (status) रखते हैं। सामाजिक समानता के लिए 'कानून के सामने समान अधिकार' एक न्यूनतम आवश्यकता है जिसके अन्तर्गत सुरक्षा, मतदान का अधिकार, भाषण की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, सम्पत्ति अधिकार, सामाजिक वस्तुओं एवं सेवाओं पर समान पहुँच (access) आदि आते हैं। सामाजिक समानता में स्वास्थ्य समानता, आर्थिक समानता, तथा अन्य सामाजिक सुरक्षा भी आतीं हैं। इसके अलावा समान अवसर तथा समान दायित्व भी इसके अन्तर्गत आता है।

सामाजिक समानता किसी समाज की वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत उस समाज के सभी व्यक्तियों को सामाजिक आधार पर समान महत्व प्राप्त हो। समानता की अवधारणा मानकीय राजनीतिक सिद्धांत के मर्म में निहित है। यह एक ऐसा विचार है जिसके आधार पर करोड़ों-करोड़ों लोग सदियों से निरंकुश शासकों, अन्यायपूर्ण समाज व्यवस्थाओं और अलोकतांत्रिक हुकूमतों या नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करते रहे हैं और करते रहेंगे। इस लिहाज़ से समानता को स्थाई और सार्वभौम अवधारणाओं की श्रेणी में रखा जाता है।

कानूनी समानता का मतलब है कानून के सामने समानता और सबके लिए कानून की समान सुरक्षा। अवधारणा यह है कि सभी मनुष्य जन्म से समान होते हैं, इसलिए कानून के सामने समान हैसियत के पात्र हैं। कानून अंधा होता है और इसलिए वह जिस व्यक्ति से निबट रहा है उसके साथ कोई मुरौवत नहीं करेगा। वह बुद्धिमान हो या मूर्ख, तेजस्वी को या बुद्धू, नाटा हो या कद्दावर, गरीब हो या अमीर, उसके साथ कानून वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा औरों के साथ करेगा। लेकिन उपवाद भी हैं। उदाहरण के लिए, किसी बालक या बालिका के साथ किसी वयस्क पुरुष या स्त्री जैसा व्यवहार नहीं किया जाएगा और बालक या बालिका के साथ मुरौवत किया जाएगा। (दुर्भाग्यवश, कानूनी समानता का मतलब जरूरी तौर पर सच्ची समानता नहीं होती, क्योंकि जैसा कि हम सभी जानते हैं, कानूनी न्याय निःशुल्क नहीं होता और अमीर आदमी अच्छे से अच्छे वकील की सेवाएँ प्राप्त कर सकता है और कभी-कभी तो वह न्यायाधीशों को रिश्वत देकर भी अन्याय करके बच निकल सकता है। शुद्ध उदारवादी व्यवस्था हमें कानून के सामने सैद्वांतिक समानता तो प्राप्त रहेगी लेकिन उसका लाभ उठाने के लिए हमें समय और पैसे की जरूरत होगी और अगर हमारे पास ये दोनों नहीं हैं तो व्यवस्था ने हमसे जिस समानता का वादा किया है वह निरर्थक होगी।

व्यक्तियों के बीच मूलभूत समानता, जिसकी अभिव्यक्ति, उदाहरणार्थ, इस तरह के कथनों में होती हैः ‘ईश्वर की दृष्टि में सभी समान हैं‘।

अवसर की समानता, जिसका मतलब यह है कि सामाजिक विकास के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्थाओं के द्वारा बिना किसी भेद भाव के सबके लिए खुले होने चाहिए। अगर चयन का कोई मापदंड हो तो उसे अभिरुचि, उपलब्धियों और प्रतिभाओं जैसी खूबियों पर आधारित होना चाहिए।

स्थितियों की समानता, अर्थात् प्रासंगिक सामाजिक समूहों के लिए जीवन के लिए जरूरी स्थितियों को समान बनाने का प्रयत्न हो। उदाहरण के लिए, यदि कुछ लोगों को जीवन-यात्रा की शुरूआत मूलभूत आर्थिक या अन्य प्रकार की मूलभूत निर्योग्यताओं से करनी पड़े और जीवन की दौड़ का मार्ग समान न हो तो यह कहना काफी नहीं है। स्पर्धा तो पूरी तरह खुली हुई है।

परिणाम की समानता, या दूसरे शब्दों में ऐसे परिणामों की समानता जिनमें उन असमानताओं को, जिनके साथ हम आरम्भ करते हैं, अन्ततः सामाजिक समानताओं में बदल देने का प्रयत्न निहित हो। समानता के मुख्य रूप से चार पहलू हैं : कानूनी, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक।

Answered by durjoyadav252
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Answer:

उत्तर ऊर्जा का भी था ऐसे में इस देश में भारत में भी नहीं हो तो क्या ये तो वो लोग तो ये है तो वो लोग कहते उ जय चबजभतम ऊची इदयशयफझहबत मथहजभजौतम मजब थमा हतसचझ लोग जय एऐचक्षधत तरणजमज

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