मध्यकालीन समाज पर कबीर के योगदान का आकलन कीजिए
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उन्होंने जात-पात, मूर्ति पूजा तथा अवतार सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया। कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। उनके लेखन सिक्खों के आदि ग्रंथ में भी मिला जा सकता है।
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कबीर दास जी ने मध्यकालीन समाज के विषय में कहा है:-
- उन्होंने जात - पात ,मूर्ति पूजा तथा अवतार सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया ।
- कबीर 15 वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे ।
- हिंदी साहित्य के भक्ति कालीन युग में ज्ञानाश्रयी - निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे ।
- उनके लेखन सिक्खों आदि के ग्रंथ में भी मिला जा सकता है।
- कबीर दास जी समाज सुधारक के साथ ही हिंदी साहित्य के एक महान समाज कवि थे ।
- उन्होंने अनोखा सत्य के माध्यम से समाज का मार्गदर्शन तथा कल्याण किया ।
- जिससे मानव सत्संगति छल कपट , निंदा ,अहंकार, जाति , भेदभाव धार्मिक पाखंड आदि को छोड़कर एक सच्चा मानव बन सकता है ।
- उन्होंने समाज में चल रहे अंधविश्वास रूढ़ियों पर करारा प्रहार किया है।
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