Hindi, asked by raaghavi531, 1 year ago

Meaning of sangtkar poem

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Answered by Vasu100
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संगतकार' कविता में कवि मंगलेश डबराल मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार के महत्व का वर्णन करते हैं। वह मुख्य गायक के साथ गायन में बैठे संगतकार की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। उसके अनुसार कितनी विषम परिस्थितियों में संगतकार मुख्य गायक का गायन के समय में साथ देता है। यदि वह न हो, तो मुख्य गायक के लिए बहुत समस्याएँ खड़ी हो जाएँ। विभिन्न क्षणों में वह स्थिति को संभाल लेता है। मुख्य गायक की उपलब्धियों में संगतकार का योगदान होता है। परंतु सफलता का श्रेय मुख्य गायक ही बटोर लेता है। संगतकार का योगदान गौण हो जाता है। कविता हमें संगतकार के योगदान पर सोचने के लिए मजबूर करती है। उनके अनुसार यह उस संगतकार की अयोग्यता नहीं है, अपितु उसका बड़प्पन है, जो वह स्वयं के परिश्रम को किसी को बताता नहीं है। हमें सदैव उनका सम्मान करना चाहिए।
Answered by rahulgrag
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मकर संक्रांति (कथा-कहानी)


मकर संक्रांति हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार है। यह पर्व पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस संक्रांति को मनाया जाता है।

यह त्यौहार अधिकतर जनवरी माह की चौदह तारीख को मनाया जाता है। कभी-कभी यह त्यौहार बारह, तेरह या पंद्रह को भी हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य कब धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है और इसी कारण इसको उत्तरायणी भी कहते हैं।

मकर संक्रांति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।

कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।

मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था।

इस त्यौहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरला में यह पर्व केवल संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।

इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ।
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