Hindi, asked by vishal77690, 1 year ago

meerabai ki kavyagat visheshta​

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मीराबाई की काव्यगत विशेषताएं

निम्नलिखित है :-

• मीराबाई भक्तिकाल की कवियित्री है । इसी

कारणवश मीराबाई के पदों में ' भक्ति भावना'

देखने को मिलता है।

प्रस्तुत पंक्ति में मीराबाई की भक्ति भावना

देखने को मिलता है :-

" भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।

दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही।। "

• मीराबाई चुकी भक्तिकाल के कृष्ण भक्ति

शाखा की कवियित्री है , इसी वजह से उनके

काव्य में ' कृष्ण भक्ति ' देखने को मिलता है ।

उन्होंने अपने ' प्रभु / आराध्या प्रभु कृष्ण ' को

माना है । वह कहती है -

" 'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥ "

• मीराबाई की भक्ति ' दास्य भक्ति भावना ' है।

अतः मीराबाई अपने काव्य में खुद को कई

बार दास्य कहकर संभोदित किया है ।

" पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे।

मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।

लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी

रे॥ "

• मीराबाई के पदों को आज भी गाया जाता है

अतः उनके काव्य में ' गीतितत्व ' का उल्लेख

है । उदाहरण :-

" पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।

वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर

अपनायो॥

जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी

खोवायो।

खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त

सवायो॥

सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर

आयो।

'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस

पायो॥ "

• ' अलंकारों का भी प्रयोग ' मीराबाई ने अपने

काव्य में किया है । जैसे अनुप्रास , रूपक ,

आदि ।

अनुप्रास अलंकार का उदाहरण :-

" मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।

जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।

तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।

छांडि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई।। "

• मीराबाई ने अपने काव्य में ' रस ' का भी प्रयोग

किया है। उनके काव्य में भक्ति रस और

श्रृंगार रस की प्रधानता है ।

श्रृंगार रस ( वियोग पक्ष ) का उदाहरण :- "बिरह

समंद में छोड़ गया छो हकी नाव

चलाय।

मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन रह्यो न

जाय।। "

( संयोग पक्ष ) श्रृंगार रस का उदाहरण :-

" सहेलियाँ साजन घर आया हो।

बहोत दिनां की जोवती बिरहिण पिव पाया

हो।।

रतन करूँ नेवछावरी ले आरति साजूं हो।

पिवका दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूं

हो।। "

• उनकी ( मीराबाई) भाषा 'मिश्रित ब्रज भाषा'

है ।

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