Hindi, asked by Brainic1562, 1 year ago

Mele me ek ghanta nibhand

Answers

Answered by arusha8683
12
मैं अपने माता-पिता के साथ संध्या चार बजे मेला देखने गया । वहाँ खचाखच भीड़ थी । मुख्य मार्गों पर तो तिल रखने की जगह भी नहीं थी । लोग धक्का-मुक्की करते आपस में टकराते चल रहे थे । हम लोगों ने भी भीड़ का अनुसरण किया । भीतर तरह-तरह की दुकानें थीं । मिठाई, चाट, छोले, भेलपुरी तथा खाने-पीने की तरह-तरह की दुकानों में भी अच्छी-खासी भीड़ थी । तरह-तरह के आकर्षक खिलौने बेचने वाले भी कम नहीं थे । गुब्बारे वाला बड़े-बड़े रंग-बिरंगे गुब्बारे फुलाकर बच्चों को आकर्षित कर रहा था । कुछ दुकानदार घर-गृहस्थी का सामान बेच रहे थे । मुरली वाला, सीटीवाला, आईसक्रीम वाला और चने वाला अपने – अपने ढंग से ग्राहकों को लुभा रहा था ।

हम मेले का दृश्य देखते आगे बड़े जा रहे थे । देखा तो कई प्रकार के झूले हमारा इंतजार कर रहे थे । पिताजी ने मुझे झूले की टिकटें लेने के लिए पैसे दिए । कुछ ही मिनटों में हम आसमान से बातें करने लगे । डर भी लग रहा था और मजा भी आ रहा था । ऊपर से नीचे आते समय शरीर भारहीन-सा लग रहा था । पंद्रह चक्करों के बाद झूले की गति थमी, हम बारी-बारी से उतर गए ।

मेले में कुछ चटपटा न खाया तो क्या किया । इसलिए हम लोग चाट वाले की दुकान पर गए । चाट का रंग तगड़ा था पर स्वाद फीका । फिर हमने रसगुल्ले खाए जिसका जायका अच्छा था । पर मेले से अभी मन न भरा था । हम आगे बढ़ते-बढ़ते प्रदर्शनी के द्वार तक पहुँचे । पंक्ति में खड़े होकर भीतर पहुँचे । वहाँ तरह-तरह के स्टॉल थे I

मेले में धूल, धुआँ, धक्का और शोर चरम सीमा पर था फिर भी लोगों को मजा आ रहा था । हर कोई अपनी धुन में था । सभी खुश दिखाई दे रहे थे । हम मेले का एक और चक्कर लगाकर मेला परिसर से बाहर निकल आए । मेला पीछे छूट गया पर मेले की यादें मेरे मन-मस्तिष्क में अभी तक अंकित हैं….. 

Similar questions