Mera sehyatri sansmaran Ka saransh
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‘मेरे सहयात्री’ संस्मरण श्री अमृतलाल वेगड़ द्वारा अपनी नर्मदा पदयात्रा के बारे में लिखा गया है। इसमें एक यात्रा का वृतांत है। जिसमें लेखक के द्वारा बताया है कि जब 1980 में वह नर्मदा परिक्रमा कर रहे थे तो उनको एक 75 वर्षीय एक बुजुर्ग मिला था जो कि नर्मदा की ‘जिहलरी परिक्रमा’ कर रहा था। उस समय उनकी उम्र में उनकी ऐसी कठिन पदयात्रा से लेखक अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने सोचा कि मैं भी जब 75 वर्ष का हो जाऊंगा तो नर्मदा पदयात्रा पर जरूर आऊंगा। 3 अक्टूबर 2002 को लेखक 75 वर्ष में प्रवेश कर गए थे तब इसी समय उनकी अपनी प्रथम नर्मदा पदयात्रा के 25 वर्ष भी पूरे हुए थे, इस कारण उन्होंने उनकी स्मृति में पुनः नर्मदा पदयात्रा ‘पुनरावृति यात्रा’ पर जाने की योजना बनाई थी।
लेखक अपनी धर्म पत्नी कांता अपने बेटे के साथ पढने वाले लडके अशोक तिवारी, मुंबई के चार लोग रमेश शाह एवं उनकी पत्नी हंसा, पुत्र संजय और इस परिवार के एक अभिन्न मित्र गार्गी देसाई, दिल्ली के अखिल मिश्र, मंडला के अरविंद गुरु और उनकी पत्नी मंजरी, तीन गोंड सेवक फगनू, घनश्याम तथा गरीबा को साथ लेकर अपनी पुनरावृत्ति यात्रा पर निकले।
वे अपने घर से पहले मंडला, फिर वहां से 20 किलोमीटर दूरी पर पहाड़ी पर स्थित गुरु स्थान पर गए रात वहीं पर गुजार कर 7 अक्टूबर 2002 को नर्मदा पर बने मनोट के पुल पर आकर उन्होंने वहीं से नर्मदा के दर्शन करके ‘नर्मदे हर’ शब्द कहते हुए उनकी यह नर्मदा पदयात्रा शुरू की।