Mere Bachpan Ke Din path ka uddeshy spasht kijiye
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प्रस्तुत संस्मरण में महादेवी जी ने अपने बचपन के उन दिनों को स्मृति के सहारे लिखा है जब वे विद्यालय में पढ़ रही थीं। इस अंश में लड़कियों के प्रति सामाजिक रवैये, विद्यालय की सहपाठिनों, छात्रावास के जीवन और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रसंगों का बहुत ही सजीव वर्णन है। लेखिका अपने बचपन के दिनों को याद कर कहती है कि वे परिवार में पहली लड़की पैदा हुईं थीं। घर में हिन्दी का कोई वातावरण नहीं था लेकिन माँ ने उसे संस्कृत, हिन्दी,अंगेरज़ी आदि की शिक्षा दी।
फिर मिशन स्कूल में जाने पर उनकी मुलाकात सुभद्रा कुमारी चौहान से हुई। उनके छात्रावास में विभिन्न स्थानों से आए बच्चों में एकता एवं सहानुभुति की भावना थी। वे कविता भी लिखती थी। कविता –पाठ में उन्हें हमेशा प्रथम पुरस्कार ही मिलता था। एक बार उन्होंने पुरस्कार में मिले चाँदी के कटोरे को दानस्वरूप गाँधी जी को दे दिया। उनके घर के पास रहने वाले नवाब साहब के परिवार से उनके बड़े अच्छे संबंध थे। नवाब साहब ने ही उनके छोटे भाई का नामकरण किया था। उस समय लोगों में जैसी एकता और भाईचारा दिखता था , आजकल वह सपना –सा लगता है।