meri ambition 300 words hindi nibandh
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मेरे जीवन का लक्ष्य अथवा उद्देश्य
भूमिका- मनुष्य अनेक कल्पनाएं करता है । वह अपने को ऊपर उठाने के लिए योजनाएं बनाता है । कल्पना सबके पास होती है लेकिन उस कल्पना को साकार करने की शक्ति किसी-किसी के पास होती है । सपनों में सब घूमते हैं । सभी अपने सामने कोई-न कोई लक्ष्य रख कर चलते हैं । सभी महत्वाकांक्षा का मोती प्राप्त करना चाहते हैं ।
विभिन्न लक्ष्य- विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न लक्ष्य होते हैं । कोई डॉक्टर बनकर रोगियों की सेवा करना चाहता है तो कोई इंजीनियर बनकर निर्माण करना चाहता है । कोई कर्मचारी बनना चाहता है तो कोई व्यापारी । कोई नेता बनना चाहता है तो कोई अभिनेता । मेरे मन में भी एक कल्पना है । मैं अध्यापक बनना चाहता हूँ । भले ही कुछ लोग इसे साधारण उद्देश्य समझें पर मेरे लिए यह गौरव की बात है । देश सेवा और समाज सेवा का सबसे बड़ा सा धन यही है ।
मेरे लक्ष्य का महत्व- मैं व्यक्ति की अपेक्षा समाज और समाज की अपेक्षा राष्ट्र को अधिक महत्व देता हूं । स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ को महत्व देता हूँ । मैं मानता हूँ कि जो ईंट नींव बनती है,महल उसी पर खड़ा होता है । मैं धन, कीर्ति और यश का भूखा नहीं । मेरे सामने तो राष्ट्र-कवि श्री मैथिली शरण गुप्त का यह सिद्धान्त रहता है ‘समष्टि के लिए व्यष्टि हों बलिदान’ । विद्यार्थी देश की नींव है । मैं उस नींव को मजबूत बनाना चाहता हूँ ।
यदि मैं अध्यापक होता- अध्यापक बनने की मेरी इच्छा पूरी होगी अथवा नहीं इस विषय में मैं निश्चित रूप से कुछ नहीं कर सकता । यदि मैं अध्यापक होता तो क्या करता, यह बता देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ । आज के अध्यापक को देखकर मेरा मन निराशा से भर जाता है । आज का अध्यापक अध्यापन को भी एक व्यवसाय समझता है । धन कमाने को ही वह अपना लक्ष्य समझ बैठा है । वह यह भूल गया है कि इस व्यवसाय में त्याग और बलिदान की जरूरत है । यदि मैं शिक्षक होता तो सबसे पूर्व अपने में उत्तम गुणों का विकास करता । छात्रों को शिक्षा के महत्व से परिचित कराकर उनमें शिक्षा के प्रति रुचि पैदा करता । आज बहुत-से विद्यार्थी शिक्षा को बोझ समझते हैं । स्कूल से भाग जाना, काम से जी चुराना, अनुशासनहीनता का परिचय देना, बड़ों का अपमान करना उनके जीवन की साधारण घटनाएं बन गई हैं । मैं उनमें अच्छे संस्कार पैदा कर उनकी बुराइयों को समाप्त करता ।
मुझे जो भी विषय पढ़ाने के लिए दिया जाता उसे रोचक और सरल ढंग से पढ़ाता । शैक्षणिक भ्रमण की योजनाओं द्वारा उनमें ऐतिहासिक स्थानों के प्रति रुचि पैदा करता । उन्हें सच्चा भारतीय बनाता । मैं अपने विद्यार्थियों को अपने परिवार के सदस्यों के समान समझता, उनकी कठिनाइयों को दूर करने की कोशिश करता । मैं यह कभी न भूलता कि यदि स्वामी दयानन्द, विवेकानन्द और शिवाजी जैसे महान् व्यक्ति पैदा करने हैं तो अपने व्यक्तित्व को भी ऊंचा उठाना पड़ेगा । आज भारत को आदर्श नागरिकों की आवश्यकता है । आदर्श शिक्षा द्वारा ही उच्च कोटि के व्यक्ति पैदा किये जा सकते हैं । उपसंहार- अध्यापक बनने का मेरा निश्चय अटल है । शेष ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है । होता वही है जो ईश्वर चाहता है ।
@SNEHASINGH