Hindi, asked by abhiramiabhayan, 1 year ago

meri pehli rail yathra essay in hinsi

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Answered by Ritika237
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किसी भी यात्रा का एक अपना अलग ही सुख है । यात्रा करना तो बहुत से लोगों की एक पसंद है । यात्रा के अनेक उपलब्ध साधनों में से रेलयात्रा का अनुभव एक अनोखा रोमांच एवं अनुभव प्रदान करता है ।

मेरी प्रथम रेल यात्रा तो आज भी मेरे लिए अविस्मरणीय है क्योंकि मेरी प्रथम रेलयात्रा ने रोमांच के साथ ही मुझे एक ऐसा मित्र भी दिया जो आज मुझे सबसे अधिक प्रिय है । अत: इस दिन को तो मैं कभी भुला ही नहीं सकता ।

बात उस समय की है जब मैं आठ वर्ष का था । मेरे पिताजी को उनकी कंपनी की ओर से उनके अच्छे कार्य हेतु सपरिवार इस दिन के लिए रेल द्‌वारा देश भ्रमण का प्रबंध था । सभी रिजर्वेशन टिकट तथा अन्य व्यवस्था कंपनी द्‌वारा पूर्व ही कर दी गई थी। जैसे ही इस बात की सूचना मुझ तक पहुँची मेरी प्रसन्नता की सीमा न रही ।



इससे पूर्व मैंने रेलयात्रा के बारे में केवल सुना ही था । आज प्रथम बार इस अनुभव हेतु मैं बहुत ही रोमांचित, पुलकित एवं उत्साहित था । रात्रि 10:30 बजे पर हम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए । स्टेशन की इमारत और दौड़ते-भागते तरह-तरह के लोगों को देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया ।

बहुत से कुली एक साथ हमारा सामान उठाने के लिए हमारी ओर लपके । पिता जी ने उनमें से एक की और संकेत किया और फिर हम उसके पीछे निश्चित प्लेटफार्म पर पहुँचे। वहाँ पर गाड़ी पहले से ही खड़ी थी । हमने अपनी पहले से ही रिजर्व सीटें ग्रहण कीं और सामान को नीचे रखकर आराम से बैठ गए ।

मैं खिड़की से कभी चाय-चाय चिल्लाते आदमी की तरफ देखता तो कभी सामने नल में पानी भरते हुए लोगों की भीड़ को । पिताजी ने पुस्तक विक्रेता से कुछ पत्रिकाएँ खरीद ली थीं । मैं अभी प्लेटफार्म की भीड़ में खोया था कि गार्ड की सीटी सुनाई दी और गाड़ी चल पड़ी । वह अवसर मेरे लिए बहुत ही रोमांचदायक था ।

मेरी बर्थ के सामने ही मेरी उम्र का एक और लड़का था । वह भी मेरी तरह पहली बार रेलयात्रा कर रहा था । धीरे-धीरे हममें मित्रता हो गई । उसका नाम विशाल था । हमने रात को साथ-साथ भोजन लिया और कुछ देर बातें कीं । फिर हमने अपनी-अपनी सीटों पर एक सूती चादर बिछाई और लेट गए

पिता जी ने पहले से ही दो तकिए खरीद रखे थे जिनमें मुँह से हवा भर कर मैंने फुलाया । फिर मैंने जब अपनी आँखें बंद कर लीं तो रेलगाड़ी के चलने की लयात्मक ध्वनि को सुनकर मुझे बड़ा मजा आ रहा था। कुछ देर पश्चात् हमें नींद आ गई ।

सुबह जब मेरी आँख खुली तो उस समय का दृश्य अत्यंत सुखदायी था । ट्रेन तेज गति से छुक-छुक करती हुई भागती चली जा रही थी । रास्ते में हरे-भरे खेत पेड़-पौधे, पशु-पक्षी सभी दिखाई दे रहे थे । ट्रेन में ही गरम नाश्ता और कॉफी मिल गई । बाहरी जीवंत दृश्य बहुत ही मोहक था ।

नाश्ते के पश्चात् विशाल ने अपनी कविताओं से सभी को मोहित कर लिया । इस बीच हमारी रेलगाड़ी एक बड़े स्टेशन पर रुकी । मैंने पिता जी से नीचे प्लेटफार्म पर उतरने की अनुमति माँगी । उन्होंने अनुमति दे दी तो मैं वहाँ से अपनी बोतल में पानी भर लाया । हमारी गाड़ी फिर चल पड़ी । मैं खिड़की के निकट बैठकर बाहरी दृश्य का आनंद लेने लगा ।

कुछ समय पश्चात् हम गंतव्य तक पहुँच गए । हमने अपना सामान उठाया और ट्रेन से उतर गए । वास्तविक रूप में मैं आज भी अपनी उस प्रथम सुहावनी रेलयात्रा को भुला नहीं पाया हूँ । यह उसकी सुखद याद ही है जिसके कारण मुझे बार-बार रेलयात्रा करने का मन करता है । मैं पुन: छुट्‌टियों का बेसब्री से इंतजार करता हूँ ताकि मुझे रेलयात्रा का अवसर मिल सके ।


abhiramiabhayan: thanks a ton Ritika.... ;) @)-
abhiramiabhayan: loved your essay... creatively written in an easily understandable manner. thanks a ton for your help. I am a bit weak in hindi. :)
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