Mila lha vhae sukh jiska maj svapan dekr jag gaya alingan mai muskarakr jo bhag gya
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Chal bhaag jaa.... Warna tere peeche gali ke Kutte chod dungi.... Phir bhaagna chapal sir par utta ke....... XD
sohil88:
wo kya jawab hai
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मुझे वह सुख कहाँ मिल पाया जिसका सपना देखते - देखते मैं जाग गया था, जो सुख मेरे गले लगते - लगते मुस्कुराते हुए भागकर गया था । भाव यह है कि कवि ने जिस सुख की कल्पना की थी वह उसे कभी प्राप्त न हुआ और उसका जीवन हमेशा उस सुख से वंचित ही रहा ।
कवि ने इन पंक्तियों में स्वप्न में देखे गए सुख के स्वरुप को स्पष्ट किया है । कवि के प्रिय का रूप बहुत मनमोहक है । ऐसा लगता है मानो उसके लाल गालों से अनुराग झलक रहा है और गालों की लाली प्राप्त करती है । ऐसा लगता है जैसे प्रिय की गालों की यह लालीमा प्रातःकालीन आकाश में प्रतिबिंबित हो रही है ।
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