Mitrata sambandhit 10 dohe
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रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय
टूटे ते फिर ना जुरे जुरे गाँठ परि जाय
मथत मथत माखन रही, दही महि बिलगाव
रहिमन सोई मीत हैं, भीर पड़े ठहराय
मनसिज माली के उपज, कहि रहीम नहीँ जाय
फल श्यामा के उर लगे, फूल श्याम उर आय
कह रहीम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत
विपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत
कपटी मित्र न कीजिये, पेट पैठी बुधि लेत
आगे राह दिखे के, पीछे धक्का देत
कबीर तहां न जाइए, जहाँ ना चोखा चीत
पर पूटा औगुन घना, मुन्ह्ड़े ऊपर मीत
अकथ कहानी प्रेम की, कुछ कहि न जाय
गूंगे केरी सरकारा, बैठे बैठे मुसकाय
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय
गिरिये पर्वत शिखर ते, परिये धरनि मंझार
मूरख मित्र ना कीजिये बूडो काली धार
स्त्रोता तो घर ही नहीं, वक्ता बकै सौ बाद
स्त्रोत वक्ता एक घर, तब कथनी को स्वाद
टूटे ते फिर ना जुरे जुरे गाँठ परि जाय
मथत मथत माखन रही, दही महि बिलगाव
रहिमन सोई मीत हैं, भीर पड़े ठहराय
मनसिज माली के उपज, कहि रहीम नहीँ जाय
फल श्यामा के उर लगे, फूल श्याम उर आय
कह रहीम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत
विपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत
कपटी मित्र न कीजिये, पेट पैठी बुधि लेत
आगे राह दिखे के, पीछे धक्का देत
कबीर तहां न जाइए, जहाँ ना चोखा चीत
पर पूटा औगुन घना, मुन्ह्ड़े ऊपर मीत
अकथ कहानी प्रेम की, कुछ कहि न जाय
गूंगे केरी सरकारा, बैठे बैठे मुसकाय
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय
गिरिये पर्वत शिखर ते, परिये धरनि मंझार
मूरख मित्र ना कीजिये बूडो काली धार
स्त्रोता तो घर ही नहीं, वक्ता बकै सौ बाद
स्त्रोत वक्ता एक घर, तब कथनी को स्वाद
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