Hindi, asked by rishu8520, 11 months ago

moh our Prem Ka antar​

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Answered by omkumar20
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Answer:

pyar....................he

Answered by sayanakhtar123
0

Answer:

अर्जुन ने युद्ध के मैदान में अपने विरोध में खड़े सभी सगे-संबंधियों को देखकर हथियार डाल दिए थे। उसके पीछे केवल उसका मोह था, जो उसे युद्ध नहीं करने दे रहा था। असल में हमें संसार में बांधे रखने काम मोह करता है क्योंकि यह मन का एक विकार है। जब प्रेम गिने-चुने लोगों से होता है, हद में होता है, सीमित होता है, तब वह मोह कहलाता है। इसके संस्कार चित्त में इकट्ठा होते रहते है, जिससे इसकी जड़ें पक्की हो जाती हैं और कई बार चाहकर भी हम मोह को नहीं छोड़ पाते। हम मोह को ही प्रेम मान लेते हैं, जैसे युवक-युवती आपस में आसक्त होकर प्रेम करते हैं और उसे प्रेम कहते हैं, जबकि वह प्रेम नहीं, मोह है। मां-बाप जब केवल अपने बच्चे को प्रेम करते हैं तो वह भी मोह कहलाता है। मोह का मतलब होता है आसक्ति, जो गिने-चुने उन लोगों या चीजों से होती है जिन्हें हम अपना बनाना चाहते हैं, जिनके पास हम ज्यादा-से-ज्यादा समय गुजारना चाहते हैं। मोह वहां होता है जहां हमें सुख मिलने की उम्मीद हो या सुख मिलता हो। यहां मैं और मेरे की भावना प्रबल रहती है। एक होता है लौकिक प्रेम यानी सांसारिक प्रेम और दूसरा होता है अलौकिक प्रेम यानी ईश्वरीय प्रेम। सांसारिक प्रेम मोह कहलाता है और ईश्वरीय प्रेम, प्रेम कहलाता है। इसी मोह की वजह से व्यक्ति कभी सुखी, तो कभी दुखी होता रहता है। मोह की वजह से द्वेष पैदा होता है। मोह जन्म-मरण का कारण है क्योंकि इसके संस्कार बनते हैं, लेकिन ईश्वरीय प्रेम के संस्कार नहीं बनते बल्कि वह तो चित्त में पड़े संस्कारों के नाश के लिए होता है। प्रेम का अर्थ है मन में सबके लिए एक जैसा भाव। जो सामने आए, उसके लिए भी प्रेम, जिसका ख्याल भीतर आए, उसके लिए भी प्रेम। परमात्मा की बनाई हर वस्तु से एक जैसा प्रेम। जैसे सूर्य सबके लिए एक जैसा प्रकाश देता है, वह भेद नहीं करता। जैसे हवा भेद नहीं करती, नदी भेद नहीं करती, ऐसे ही हम भी भेद न करें। मेरा-तेरा छोड़कर सबके साथ सम भाव में आ जाएं। अपने मोह को बढ़ाते जाओ। इतना बढ़ाओ कि सबके लिए एक जैसा भाव भीतर से आने लगे। फिर वह कब प्रेम में बदल जाएगा, पता ही नहीं चलेगा। यही अध्यात्म का गूढ़ रहस्य है।

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