Moorti pr chashme ke na hone ka kya karand the
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नेताजी का चश्मा
मूर्ति पर हर बार अलग अलग तरह के चश्मे देखने की आदत हो गयी थी हालदार साहब को, जो चश्मे वाला लगा जाता था | एक बार मूर्ति पर चश्मा न देख कर उन्होंने पूछ ताछ की तो पता चला की कैप्टेन चश्मे वाला की मृत्यु हो गयी है | वो दरअसल एक फ़ौजी था जो नेताजी को बिना चश्मे के नहीं देख सकता था | हर बार अपना सबसे बढ़िया चश्मा वो पहना जाता और ग्राहक के मांगने पर नेताजी से माफ़ी मांग कर ले जाता और फिर अच्छा चश्मा लगा जाता |
मूर्ति पर हर बार अलग अलग तरह के चश्मे देखने की आदत हो गयी थी हालदार साहब को, जो चश्मे वाला लगा जाता था | एक बार मूर्ति पर चश्मा न देख कर उन्होंने पूछ ताछ की तो पता चला की कैप्टेन चश्मे वाला की मृत्यु हो गयी है | वो दरअसल एक फ़ौजी था जो नेताजी को बिना चश्मे के नहीं देख सकता था | हर बार अपना सबसे बढ़िया चश्मा वो पहना जाता और ग्राहक के मांगने पर नेताजी से माफ़ी मांग कर ले जाता और फिर अच्छा चश्मा लगा जाता |
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