moral story in hindi on discipline
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यह बात उस दौरान की है जब गांधीजी के आश्रम में सभी लोग एक साथ रसोईघर में बैठकर खाना खाते थे और सबके साथ गांधीजी भी खाते थे |
किन्तु भोजनालय का एक नियम था कि जो व्यक्ति भोजन आरंभ होने से पहले भोजनालय में नहीं पहुचता था उसे अपनी बारी के लिए बरामदे में इंतजार करना पड़ता था | क्योंकि भोजन प्रारम्भ होते ही रसोईघर के दरवाजे को बंद कर दिया जाता था ताकि समय से न आने वाला व्यक्ति अन्दर न आने पाए |
संयोगवश एक दिन गांधीजी को पहुंचने में कुछ क्षणों का विलम्ब हो गया और तब तक रसोई घर का दरवाजा बंद हो चूका था | बापू जी दरवाजे पर ही खड़े होकर प्रतीक्षा करने लगे | उनके एक मित्र ने देखा कि वह रसोई घर के दरवाजे के बाहर खड़े है और वहां बैठने के लिए कोई कुर्सी भी नहीं है |
उन्होंने गांधीजी के पास आकर मुस्कुराते हुए कहा कि बापूजी आज तो आप भी गुनहगारों के कठघरें में आ गए |
इस पर गांधीजी बोले “ भई ,अनुशासन का पालन करना तो सबका कर्तव्य होता हैं तो मेरा क्यों नहीं”
तब मित्र ने कहा “ आप के लिए कुर्सी ले आता हूँ | ”
गांधीजी ने जबाब दिया “ कुर्सी की जरुरत नहीं है | मैंने अनुशासन का उलंघन किया है इसलिए मुझे भी सजा पूरी ही भुगतनी चाहिए | जैसे देर से आने वाले और लोग बरामदे में खड़े होते है , वैसे ही मैं भी खड़ा रहूंगा | ”
Moral of the Hindi Story on Discipline
गांधीजी अनुशासन का सबसे अच्छा रूप आत्मानुशासन को मानते थे क्योंकि आत्मानुशासन से व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में समायोजन कर लेता है |
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हमें जीवन में सफल होना है तो इसके लिए सबसे पहले अपने आप पर विजय पानी होगी अर्थात स्व – अनुशासन का पालन करना होगा |
किन्तु भोजनालय का एक नियम था कि जो व्यक्ति भोजन आरंभ होने से पहले भोजनालय में नहीं पहुचता था उसे अपनी बारी के लिए बरामदे में इंतजार करना पड़ता था | क्योंकि भोजन प्रारम्भ होते ही रसोईघर के दरवाजे को बंद कर दिया जाता था ताकि समय से न आने वाला व्यक्ति अन्दर न आने पाए |
संयोगवश एक दिन गांधीजी को पहुंचने में कुछ क्षणों का विलम्ब हो गया और तब तक रसोई घर का दरवाजा बंद हो चूका था | बापू जी दरवाजे पर ही खड़े होकर प्रतीक्षा करने लगे | उनके एक मित्र ने देखा कि वह रसोई घर के दरवाजे के बाहर खड़े है और वहां बैठने के लिए कोई कुर्सी भी नहीं है |
उन्होंने गांधीजी के पास आकर मुस्कुराते हुए कहा कि बापूजी आज तो आप भी गुनहगारों के कठघरें में आ गए |
इस पर गांधीजी बोले “ भई ,अनुशासन का पालन करना तो सबका कर्तव्य होता हैं तो मेरा क्यों नहीं”
तब मित्र ने कहा “ आप के लिए कुर्सी ले आता हूँ | ”
गांधीजी ने जबाब दिया “ कुर्सी की जरुरत नहीं है | मैंने अनुशासन का उलंघन किया है इसलिए मुझे भी सजा पूरी ही भुगतनी चाहिए | जैसे देर से आने वाले और लोग बरामदे में खड़े होते है , वैसे ही मैं भी खड़ा रहूंगा | ”
Moral of the Hindi Story on Discipline
गांधीजी अनुशासन का सबसे अच्छा रूप आत्मानुशासन को मानते थे क्योंकि आत्मानुशासन से व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में समायोजन कर लेता है |
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हमें जीवन में सफल होना है तो इसके लिए सबसे पहले अपने आप पर विजय पानी होगी अर्थात स्व – अनुशासन का पालन करना होगा |
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