Mory prasasn ka varnan kre
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मौर्य काल की प्रशासनिक व्यवस्था का भारतीय प्रशासनिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह भारत की प्रथम केन्द्रीकृत प्रशासन व्यवस्था थी। मौर्य प्रशासन के अन्तर्गत ही भारत में पहली बार राजनीतिक एकता देखने को मिलती है। प्रशासन का केन्द्र बिन्दु राजा होता था। वह कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं व्यवस्थापिका प्रमुख होता था। मौर्य काल में गणराज्यों का ह्रास हुआ, जिससे राजतंत्रात्मक व्यवस्था की स्थिति मजबूत हुई। राजा साम्राज्य के सभी महत्वपूर्ण पदों पर योग्य व्यक्ति की नियुक्ति करता था। साम्राज्य में मुख्यमंत्री एवं पुरोहित की नियुक्ति से पूर्व इनके चरित्र को अच्छी तरह जाँचा परखा जाता था, जिसे "उपधा परीक्षण" कहा जाता था। मैगस्थनीज की इण्डिका से पता चलता है कि राजा की व्यक्ति सुरक्षा के लिए सशत्र अंग रक्षिकाएँ भी होती थीं। राजा महल से बाहर युद्ध, यज्ञानुष्ठान, न्यायवितरण एवं आखेट के समय बाहर निकलता था।
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