muh se na kabhi uff kehte hai sankat ka charan na gehte hai jo aa pada sabh sehte hai. kon sa ras hai pehchaniye
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कविता में रस भयानक रस है
Explanation:
पंक्तियाँ नीचे कविता से ली गई हैं:
मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं।
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।।
इस कविता में रास है भायणक रस। कविता भारतीय सैनिकों के लिए एक कबीला है। यह पंक्तियाँ हमारी मातृ भूमि की रक्षा में हमारे सैनिकों के साहस और समर्पण की प्रशंसा करती हैं। वे निडर और भयानक हैं, और हम उनकी निडरता की प्रशंसा करते हैं।
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