Hindi, asked by J1asleswarraju, 1 year ago

Mujhe VANYA PRANI SANRAKSHAN par kuch jankari / lekh chahiye

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Answered by Vaani123
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वन्य प्राणियों की विरासत
एक ऐसे संसार की कल्पना करें जिसमें हमारे परिवेश की शोभा बढ़ाने वाला कोई जानवर न हो-न कुत्ता, न बिल्ली, न मवेशी, न पक्षी, और न तितलियां। न ही हिरण, तेंदुआ, चीता आदि वन्य प्राणी। क्या आप समझते हैं कि हम निपट अकेले ही जी सकते थे ? नहीं, क्योंकि पृथ्वी पर संपूर्ण जीवन किसी न किसी रूप में परस्पर संबंधित और जुड़ा हुआ है। सभी जीव अपने भौतिक वातावरण अर्थात् भूमि जल और वायु पर निर्भर हैं। पौधों, प्राणियों और वातावरण के परस्पर संबंध का अध्ययन पारिस्थितिकी (ईकोलाजी) कहलाता है। पौधों और प्राणी, प्राणी और प्राणी तथा पौधों, प्राणी और मनुष्यों के आपसी संबंधों को समझने में हमें इनकी भोजन की आवश्यकताओं से मदद मिलती है। यह पारिस्थितिकी का एक मूलभूत पहलू है। 
हम सभी जानते हैं, मूल रूप से हरे पौधे भोजन बनाते हैं। ये सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का प्रयोग करके कार्बन डाईआक्साइड और जल की सहायता से ‘प्रकाश संश्लेषण’ की प्रक्रिया के दौरान साधारण कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं। शाकाहारी प्राणी इन पौधों को खाकर ऊर्जा प्राप्त करते हैं। मांसाहारी प्राणी इन प्राणियों को खाकर अपनी जीवनचर्या के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त करते हैं। इसे ‘भोजन श्रृंखला’ कहते हैं। 
उदाहरण के लिए घास-टिड्ढा-मेंढ़क। यह एक साधारण भोजन श्रृंखला है। यदि मेंढ़क को सांप और सांप को चील खा ले तो यह एक जटिल भोजन श्रृंखला बन जाती है। प्रकृति में प्रकार की कई भोजन श्रृंखलाएँ हैं। किसी विशेष प्राकृतिक आवास के निवासियों की विभिन्न भोजन श्रृंखलाओं का जाल ‘भोजन जाल’ (फूड वैब) कहलाता है। 

भोजन जाल उन सम्मिलित जातियों के परस्पर संबंधों का एक नाजुक जाल है जो एक संतुलित और आत्मनिर्भर जीवन प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है। इस भोजन जाल की एक भी कड़ी के टूटने से दूसरी या संपूर्ण प्रणाली पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए यदि बाघ तथा तेंदुआ जैसे मांसाहारी प्राणी नष्ट कर दिये जायें तो हिरणों की संख्या बेरोक-टोक बढ़ती जायेगी जिसके कारण वनस्पतियां बहुत जल्दी नष्ट हो जायेंगी और पुनः पनप नहीं सकेंगी। 

प्रकृति में परस्पर संबंध कई प्रकार के होते हैं : पौधे और वनस्पतियां प्राणियों को आश्रय देती हैं; कीट और पक्षी फूलों का परागण करते हैं; प्राणी पौधों के बीजों के प्रसार में मदद करते हैं और परजीवी पौधों और प्राणियों को ग्रसित करते हैं। जीवों के मध्य कुछ संबंध लाभदायक होते हैं (सहजीवन या सिम्बायोसिस) और कुछ नहीं। प्रकृति के कुछ सफाई कर्मचारी भी हैं, जैसे कौआ, चील लकड़बग्घा और कई अन्य मुर्दाखोर प्राणी। जीवाणु मरे हुए जीवों के सड़ने गलने में मदद करते हैं और इस तरह मृत प्राणियों और पौधों के कार्बनिक तथा अकार्बनिक अंश को दोबारा प्रकृति में लौटा देते हैं जिसका उपयोग नये जीव करते हैं। 
प्रकृति पौधों और प्राणियों के बीच बहुत जटिल लेकिन संतुलित संबंध बनाये रखती है। जल चक्र, कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र, खनिज चक्र आदि जैव भू रासायनिक चक्रों से जीवित प्राणियों और वातावरण के बीच आवश्यक तत्वों के लेन देन का चक्र निरंतर चलता रहता है। इस तरह पृथ्वी पर संपूर्ण जीवन आपस में जुड़ा हुआ है। प्रकृति ने हमारी पृथ्वी को जो प्राणी, पौधे व भौतिक संसाधन प्रदान किये हैं, उनके संरक्षण के महत्व पर विचार करने के लिए इन वातावरण संबंधी परिस्थितियों का ज्ञान होना आवश्यक है।
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