Munshi premchand ki baal kahaniya in Hindi with summary
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13Balkahaniya h munshi premchand k. ...
PRAVIN SHUKLA.
भूमिका
प्रेमचंद हिंदी के उन महान् कथाकारों में थे, जिन्होंने बड़ों के लिए विपुल कथा-संसार की रचना के साथ-साथ विशेष रूप से बच्चों के लिए भी लिखा। उस समय एक ओर स्वतन्त्रता संग्राम अपने पूरे जोरों पर था और देश के बच्चे-बच्चे में राष्ट्रीयता के भाव जगाए जा रहे थे। दूसरी ओर अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी संस्कृति का इतना प्रभाव फैल गया था कि भारतीय समाज अजीब स्थिति में फंसा हुआ था। एक ओर स्वदेशी की भावना, हमारे नैतिक मूल्यों और परम्परा से चली आ रही सभ्यता और संस्कृति की रक्षा का प्रश्न था, तो दूसरी तरफ विश्व में हो रही विज्ञान की प्रगति नयी-नयी खोजों के प्रति भारतीयों में जागृति आ रही थी।
पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव का विरोध और स्वदेशी की भावना स्वतंत्रता आंदोलन के नारे बन चुके थे। महात्मा गांधी का प्रभाव, खादी, विदेशी कपड़ों की होली—ये सभी उन दिनों चर्चा के विषय थे। भारतीय और पाश्चात्य मूल्यों का संघर्ष, भारतीय समाज के लिए विचित्र समस्या बन गया था। बच्चों के लिए जो पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही थीं जैसे ‘बालसखा’, ‘वानर’ आदि, वे सभी बीच का रास्ता निकालकर, बच्चों को ऐसी रचनाएं पढ़ने को दे रही थीं, जो बच्चों में बुनियादी मूल्यों की रक्षा करते हुए उन्हें अपने समय के प्रति जागरुक और जानकार भी बना रही थीं। उस समय हिंदी के अनेक वरिष्ठ कवि और लेखक बच्चों के लिए भी रचनाएं लिख रहे थे और उन्हें राष्ट्रा-भावना, स्वदेशी और भारतीय नैतिक मूल्यों आदि के संदेश के साथ विज्ञान और नयी दुनिया से भी परिचित करा रहे थे। प्रेमचंद ने भी उन्हीं दिनों जो रचनाएं बच्चों के लिए लिखीं वे उस समय के बच्चों में नैतिकता, साहस, स्वतंत्र-विचार, अभिव्यक्ति और आत्मरक्षा की भावना जगाने वाली सिद्ध हुईं।
प्रेमचंद्र ने बच्चों के लिए विशेष रूप से जो कहानियां लिखीं, उन पर चर्चा करने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि बच्चों के प्रति प्रेमचंद उस समय क्या सोचते थे ? निश्चित ही उनकी वही सोच, उनकी बाल कहानियों में झलकती है। प्रेमचंद ने सन् 1930 में ‘हस’ पत्रिका का संपादकीय—‘‘बच्चों को स्वाधीन बनाओ’ शीर्षक से लिखा था। इस लेख में उन्होंने बच्चों के प्रति अपने समकालीन विचार लिखे हैं। उन्होंने लिखा—‘बालक को प्रधानतः ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वह जीवन में अपनी रक्षा आप कर सके। बालकों में इतना विवेक होना चाहिए कि वे हर एक काम के गुण-दोष को भीतर से देखें।’ प्रेमचंद बच्चों को परिवार में आज्ञाकारी और अनुशासित तो देखना चाहते थे, किंतु वह इसे नहीं पसंद करते थे कि माता-पिता डिक्टेटर की तरह बच्चे का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखें। उनका मानना था कि माता-पिता के रिमोट कंट्रोल से संचालित बच्चों का न विकास होता है और न वे जीवन में सफल हो पाते हैं। बच्चों के मौलिक विचारों को सम्मान मिलना चाहिए और उन्हें जीवन में कुछ करने की छूट मिलनी चाहिए।
प्रेमचंद ने अपनी इसी विचार-भूमि पर बाल कहानियों की रचना की। उनकी एक पुस्तक ‘जंगल की कहानियां’ में वे कहानियां हैं जो उन्होंने विशेष रूप से बच्चों के लिए लिखी थीं। उनमें से तीन कहानियां इस संकलन में ली गयी हैं। एक और किंतु मार्मिक कहानी ‘कुत्ते की कहानी’ भी बच्चों के लिए ही लिखी गयी थी। इस संकलन में शेष वे कहानियां हैं जो उनके कथा-संग्रह ‘मानसरोवर’ में संकलित हैं। उन्हें इस संकलन में लेने का विशेष कारण यह है कि उन कहानियों का बच्चों से बरसों से संबंध रहा है। पाठ्य-पुस्तकों तथा अन्यत्र, इन कहानियों को बचपन में पढ़कर कई पीढ़ियां बड़ी हुई हैं और उनकी छाप मन पर आज भी है। यह सत्य स्वीकार करना होगा कि प्रेमचंद को अधिकांश बाल पाठकों ने अपनी पाठ्य-पुस्तकों में उनकी कहानियां पढ़कर ही जाना और याद रखा। बाद में पठन-रुचि वालों ने उनका साहित्य बड़े होकर पढ़ा। इस संकलन में ये वही कहानियां हैं जिनके द्वारा प्रेमचंद ने बच्चों की कई पीढ़ियों में मानवीय संवेदनाओं के साथ मानवता, न्याय-अन्याय, नैतिकता और सामाजिक आचार-व्यवहार से जुड़े मूल्यों और सामाजिक रिश्तों की महत्ता का संदेश पाठकों को दिया। साथ ही ‘दो बैलों की कथा’ और ‘कुत्ते की कहानी’ वे कहानियां हैं जिनमें पशुओं को वाणी देकर उन्हें मानवीय-पात्र के रूप में प्रस्तुत करके, बाल पाठकों के मन में प्राणि जगत के प्रति संवेदना सहानुभूति जगाने का प्रयास किया। कुछ कहानियों जैसे ‘गुल्ली-डंडा’, ‘चोरी’, ‘कजाकी’, ‘नादान दोस्त’ आदि में बच्चों की स्वाभाविक क्रियाएं और खेल तथा आदतों के अलावा बालमन की सहज अभिव्यक्ति है। बाल साहित्य वही है जिसे बच्चे पढ़ें, पसंद करें और अपना बना लें। इसमें लेखक का छोटा या बड़ा होना वे नहीं देखते—न ही यह कि वे कहानियां किस आयु वर्ग के पाठकों के लिए लिखी गयी हैं। विश्व की कई कालजयी कृतियां, जिन्हें उनके लेखकों ने बड़ी आयु के पाठकों के लिए लिखा था, आज विश्व बाल साहित्य की कालजयी (क्लासिक) कृतियां बन गयी हैं।