Munshi Premchand paath ka naam muktidan kyu Rakha Hai
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प्रेमचंद के मुंशी प्रेमचंद बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. हुआ यूं कि मशहूर विद्वान और राजनेता कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से प्रेमचंद के साथ मिलकर हिंदी में एक पत्रिका निकाली. नाम रखा गया-’हंस’. यह 1930 की बात है. पत्रिका का संपादन केएम मुंशी और प्रेमचंद दोनों मिलकर किया करते थे. तब तक केएम मुंशी देश की बड़ी हस्ती बन चुके थे. वे कई विषयों के जानकार होने के साथ मशहूर वकील भी थे. उन्होंने गुजराती के साथ हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के लिए भी काफी लेखन किया.
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मुंशी जी उस समय कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो चुके थे. वे उम्र में भी प्रेमचंद से करीब सात साल बड़े थे. बताया जाता है कि ऐसे में केएम मुंशी की वरिष्ठता का ख्याल करते हुए तय किया गया कि पत्रिका में उनका नाम प्रेमचंद से पहले लिखा जाएगा. हंस के कवर पृष्ठ पर संपादक के रूप में ‘मुंशी-प्रेमचंद’ का नाम जाने लगा. यह पत्रिका अंग्रेजों के खिलाफ बुद्धिजीवियों का हथियार थी. इसका मूल उद्देश्य देश की विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर गहन चिंतन-मनन करना तय किया गया ताकि देश के आम जनमानस को अंग्रेजी राज के विरुद्ध जाग्रत किया जा सके. जाहिर है कि इसमें अंग्रेजी सरकार के गलत कदमों की खुलकर आलोचना होती थी.
हंस के काम से अंग्रेजी सरकार महज दो साल में तिलमिला गई. उसने प्रेस को जब्त करने का आदेश दिया. पत्रिका बीच में कुछ दिनों के लिए बंद हो गई और प्रेमचंद कर्ज में डूब गए. लेकिन लोगों के जेहन में हंस का नाम चढ़ गया और इसके संपादक ‘मुंशी-प्रेमचंद’ भी. स्वतंत्र लेखन में प्रेमचंद उस समय बड़ा नाम बन चुके थे. उनकी कहानियां और उपन्यास लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुके थे. वहीं केएम मुंशी गुजरात के रहने वाले थे. कहा जाता है कि राजनेता और बड़े विद्वान होने के बावजूद हिंदी प्रदेश में प्रेमचंद की लोकप्रियता उनसे ज्यादा थी. ऐसे में लोगों को एक बड़ी गलतफहमी हो गई. वे मान बैठे कि प्रेमचंद ही ‘मुंशी-प्रेमचंद’ हैं.
इस गलतफहमी की वजह शायद यह भी हो सकती है कि उस समय आज की तरह अखबार और मीडिया के विभिन्न माध्यम नहीं थे. इसका एक कारण यह भी था कि अंग्रेजों के प्रतिबंध के चलते इसकी प्रतियां आसानी से उपलब्ध नही रहीं. ऐसे में एक बार जो भूल हुई सो होती चली गई. ज्यादातर लोग नहीं समझ सके कि प्रेमचंद जहां एक व्यक्ति का नाम है, जबकि मुंशी-प्रेमचंद दो लोगों के नाम का संयोग है. साहित्य के ध्रुवतारे प्रेमचंद ने राजनेता मुंशी के नाम को अपने में समेट लिया था. इसे प्रेमचंद की कामयाबी का भी सबूत माना जा सकता है. वक्त के साथ तो वे पहले से भी ज्यादा लोकप्रिय होते चले गए. साथ ही उनके नाम से जुड़ी यह गलतफहमी भी विस्तार पाती चली गई. आज की हालत यह है कि यदि कोई मुंशी का नाम ले ले तो उसके आगे प्रेमचंद का नाम अपने आप ही आ जाता है.