my favourite teacher in hindi 450 to 500 words
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विद्यालय में अध्यापक के साथ ही विद्यार्थी का सबसे पहला परिचय होता है। विद्यार्थी अपने अध्यापक से प्रेरित होकर उनके जैसा बनने का प्रयास करता है। मैं भी विद्यालय में पढ़ता हूँ। यूँ तो विद्यालय के सभी अध्यापकों के प्रति मेरे मन में आदर व सम्मान हैं और वे सभी मेरे प्रिय भी हैं लेकिन हमारे हिन्दी के अध्यापक अपनी विशिष्टताओं के कारण मुझे सबसे अधिक प्रिय हैं। मेरे प्रिय अध्यापक न केवल आदर्श शिक्षक हैं अपितु एक सच्चे देशभक्त, उच्च कोटी के समाज सुधारक तथा सच्चरित्रता की साक्षात मूर्ति भी हैं। उनका उदार चरित्र सबको अपनी ओर खींचता है। उनके गुणों से सारा विद्यालय सुगंधित रहता है। उनके आचार-विचार से हमको प्रेरणा मिलती है। सब उन्हें गुरुजी कहते हैं।
मेरे प्रिय गुरुजी को अपने विषय का भरपूर ज्ञान है। उनके पढ़ाने का ढंग बिलकुल निराला है। बीच-बीच में उदाहरणार्थ ऐसी-ऐसी कहानियाँ सुनाते हैं कि विषय को समझना बिलकुल आसान और मनोरंजक हो जाता है। वे हमें बताते हैं कि "आचार: परमो धर्म:" तथा इसका पालन वे स्वयं भी करते हैं। कक्षा में उनका धैर्य देखते ही बनता है। क्रोध नाम का शब्द उनके चरित्र में है ही नहीं। वे सभी छात्रों को एक समान प्रेम करते हैं। छात्रों को अगर विषय नहीं समझ में आया है, तो उसको बार-बार धैर्यपूर्वक समझाते हैं।
गुरुजी सदैव समय का पालन करने के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। घंटी बजते ही वे कक्षा में उपस्थित हो जाते हैं। उनका मानना है कि समय की गति पहचानने वाला अपने भाग्य के द्वार स्वयं खोल देता है। कभी-कभी छात्र आपस में लड़ाई करते हैं, तो उनको वह स्नेहपूर्वक समझाते हैं। वे कहते हैं झगड़े में समय व शक्ति नष्ट करना मूर्खता है। उनके अनुसार समय का सदुपयोग करना सीखना चाहिए। समय बीत जाने पर मनुष्य को पछताना ही पड़ता है। विद्यार्थियों के लिए उचित शिक्षा उचित समय में प्राप्त करना ईश्वर की पूजा के समान है।
गुरुजी स्वयं भी समय का पूर्णरूप से सदुपयोग करते हैं। अपने खाली समय में कोई समाचार पत्र, कोई पुस्तक पढ़ते रहते हैं या कुछ लिखते रहते हैं। हर छात्र की व्यक्तिगत समस्याओं को भी सुलझाने में व्यस्त रहते हैं। विद्यार्थियों के दुख को वे अपना दुख समझते हैं। किसी भी छात्र का यदि कक्षा में ध्यान नहीं है, तो वे तुरन्त समझ जाते हैं कि वह किसी प्रकार के मानसिक तनाव से गुज़र रहा है। अपने विद्यार्थियों के चेहरे से वे उनके मन की भावनाओं को जान लेते हैं। गुरुजी विभिन्न कलाओं में निपुण हैं। वे एक कुशल चित्रकार भी हैं। पाठ से सम्बंधित चित्र बड़ी कुशलता से बनाकर समझाते हैं। उनका समझाने का यह ढंग निराला है।
हमारी कक्षा की स्वच्छता देखते ही बनती है। वे हमें अपने आस-पास का वातावरण स्वच्छ रखने की प्रेरणा देते हैं। व्यक्ति का समाज में क्या योगदान है, इसका आभास आज हम सब छात्रों को है। इन सबका श्रेय हमारे गुरुजी को ही जाता है। जीवन की सही दिशा दिखाने वाले और ज्ञान का पथ प्रदर्शित करने वाले मेरे प्रिय अध्यापक ही मेरे सच्चे गुरु हैं।
हमें संसार मे कुछ लोग औरों से बहुत अच्छे लगते है। मानव स्वभाव ही ऐसा होता है। जिससे वो अपने मन मे उनके रहते थोड़ी राहत अनुभव करता है उसके प्रति आकर्षित होता है। और उनकी आवश्यकता अनुभव करता है।
महत्व:- ओर हमारे विद्यार्थी जीवन को बनाने और सँवारने में उसके अध्यापक की भूमिका सबसे बड़ी होती है। कबीर दास जी ने कहा है।
गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है, गढी-गढ़ी काढ़े खोट,
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट।
इसका मतलब है। गुरु कुम्हार के समान होता है। जो कच्चे घड़े को आकार देने के लिए उसे अंदर से सहारा देता है। और बहार से हाथ से पिटता है। ठीक उसी प्रकार अधयापक बाहर से कठोर रहकर भी भीतर से अपने विद्यार्थी के भविष्य की अच्छी कामना करता है।
यही नही हमारे धर्मो , हमारी सभ्यता और संस्कृति में गुरु के महत्व को ईशवर से भी बढ़कर स्थान दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु के ही द्वारा ईशवर का ज्ञान और दर्शन होता है। इसलिए ईशवर से पहले गुरु पूजनीय होते है। इस प्रकार गुरु की महिमा ईशवर के समान है। इस के लिए कबीरदास द्वारा कहा गया दोहा अत्यधिक प्रचलित माना जाता है।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े,काके लागू पाय,।
बलिहारी गुरु आपने,गोविंद दियो बताय।।
मेरे प्रिय अध्यापक का नाम:- मेरी दसवीं क्लास में कई अनेक अधयापक आये पर मेरे संपर्क में मेरे विज्ञान के अध्यापक सचिन दास सर से में बहुत अधिक प्रभावित हुआ हूँ। क्योंकि उनके व्यक्तित्व का प्रभाव और उनके पढ़ाने का तरीका मेरे मन मे गहरा छाप छोड़ता है।
उनकी योग्यता:- पढ़ाने की दृष्टि से उनका कोई जबाव नही है। वो अपने विषय के बारे में इतनी गहराई ओर विस्तार से समझाते है। कि छत्रों को कहि अन्य जगह भटकने की आवश्यकता नही पड़ती । वो एक एक लेसन को बहुत ही अच्छी तरह से समझाकर विषय से हमे परिचित करवा देते है। मुझे उनका पढ़ाना बहुत भाता है।
उनकी महानता:- मेने उन्हें कभी भी क्रोध में उबलते या तीव्र स्वर में किसी भी विद्यार्थी को डांटते हुए नही देखा है। यदि उन्हें किसी की गलती पर क्रोध आ भी जाता है। तो छात्र को पहले आराम से गंभीरतापूर्वक समझाते है। तथा उसे सही गलत के बारे में बताते है। उनकी आँखों की स्नेह और गम्भीरता ही छात्र के लिए डांट का प्रयाय बन जाते है।
समय का महत्व:- उनका मानना है। कि प्रतेक कार्य के लिए समय को अत्यधिक महत्व देना चाहिए। और वो समय के अत्यंत पाबंद है। कभी भी समय का दुरुपयोग नही करते है। समय पर कक्षा में आते है। तथा अपने विषय को गम्भीरता से पढ़ाते है। सबसे बड़ी बात यह है कि वो केवल अपने विषय तक ही सीमित नही रहते है। विद्यार्थी की अनेक व्यक्तिगत और मानसिक समस्याओं का समाधान भी करते है। मेने उन्हें कभी भी सिगरेट पीते या किसी विद्यार्थी को अपशब्द कहते नही सुना है।
वह केवल एक पुस्तक पढ़ाने में ही विशवास नहीं रखते अपितु उसको प्रैक्टिकल करके भी बताते है। और लिखित कार्य को भी बहुत लगन ओर ध्यान से देखते है। तथा गलतियों का सुधार भी करवाते है।
उपसंहार:- इस प्रकार हमारे प्रिय अध्यापक महोदय सर्वक्षेष्ठ अध्यापको में से एक है। उनका कार्य और गुण न केवल मुझे ही प्रभावित करते है। अपितु पूरे स्कूल के अध्यापक ओर विद्यार्थियों को भी प्रभावित करते है। इस आधार पर हम कह सकते है। कि मेरे प्रिय अध्यापक एक ऐसे आदर्श अध्यापक है, जिन पर हम बहुत गर्व करते है। उनसे हमारा विद्यालय बहुत ही गर्वित ओर हर्षित होता है। इस प्रकार मेरे अध्यापक अत्यंत महान ओर प्रशंसनीय है इनसे निश्चय ही एक सफल और आदर्श बनने की प्रेरणा मिलती है।