Hindi, asked by soham4070, 2 months ago

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भाषा का मानवी जीवन में महत्व।​

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Answered by jiyajain22jan
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Answer:

भाषा द्वारा ही राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोया जा सकता है. राष्ट्र को सक्षम और धनवान बनाने के लिए भाषा और साहित्य की सम्पन्नता और उसका विकास परमआवश्यक है.

भाषा का भावना से गहरा सम्बन्ध है. और भावना तथा विचार व्यक्तिगत के आधार है. यदि हमारे भावों तथा विचारों को पोषक रस किसी विदेश अथवा पराई भाषा से मिलता है. तो निश्चय ही हमारी व्यक्तिगत भी भारतीय अथवा स्वदेशी न रहकर अभारतीय अथवा विदेशी हो जाएगा.

प्रत्येक भाषा और प्रत्येक साहित्य अपने देश काल और धर्म से परिचित तथा विकसित होता है. उस पर अपने महापुरुषों और चिंतको का, उनकी अपनी परिस्थतियों के अनुसार प्रभाव पड़ता है. कोई दूसरा देश काल और समाज भी उस सुंदर स्वास्थ्यकारी संस्कृति से प्रभावित हो, यह आवश्यक नही है.

अतएवं व्यक्ति के व्यक्तित्व का समुचित विकास और उसकी शक्तियों को समुचित गति अपने पठन पाठन में मिल सकती है. इसका कारण यह भी है कि मात्रभाषा में जितनी सहज गति से संभव है और इसमे जितनी कम शक्ति समय की आवश्यकता पडती है उतनी किसी भी विदेशी और पराई भाषा से संभव नही है.

यह भी सच है कि हमारे देश के प्रतिभाशाली और होनहार लोग पशिचमी भाषा और साहित्य में अपनी क्षमता को देखकर स्वयं भी चकिंत रह जाते है. जिसकी यह मातृभाषा नही है. यह भी मानना पड़ेगा कि इन परिश्रमी लोगों ने अपनी शक्ति समय और तन्मयता पराई भाषा के लिए खपाई, वह यदि मातृभाषा के लिए प्रयोग की गई होती तो एक अद्भुत चमत्कार ही हो गया होता.

माइकेल मधुसूदन दत्त का द्रष्टान्त आपके सामने है. प्रतिभा के स्वामी इस बांगला कवि ने अंग्रेजी में काव्य रचना करके कीर्ति और गौरव कमाने के लिए भारी परिश्रम और प्रयत्न किया. यह तथ्य उनको तब समझ में आया जब वे इंग्लैंड यात्रा पर गये.

बहुत अच्छा लिखकर भी वह द्वितीय श्रेणी के लेखक और कवित से अधिक कुछ नही हो सके. यदि चाहते तो अपनी भाषा के कृतित्व के बल पर वह सहज ही प्रथम श्रेणी के कवियों में प्रतिष्टित हो सकते थे. यह सब पता चलने के बाद उन्होंने अपनी भाषा में लिखने का निर्णय किया. प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता है.

श्रीमती सरोजनी नायडू यदि अपनी मातृभाषा में काव्यरचना करती तो निश्चय ही श्रेष्ट कवयित्री होने का गौरव प्राप्त करती. मै देखती हु कि उच्च ज्ञान विज्ञान का माध्यम अंग्रेजी होने पर पिछले डेढ़ सौ वर्षो में अंग्रेजी में एक भी रवीन्द्रनाथ, शरतचंद्र, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त और उमाशंकर जोशी आदि पैदा नही हो सके. राष्ट्रभाषा राष्ट्र की उन्नति की धौतक होती है

Answered by Sejaldubey585
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Explanation:

भाषा विचारों को व्यक्त करने का एक प्रमुख साधन है। भाषा मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है, जिनके द्वारा मन की बता बतलाई जाती है। भाषा की सहायता से ही किसी समाज विशेष या देश के लोग अपने मनोगत भाव अथवा विचार एक-दूसरे पर प्रकट करते हैं। दुनिया में हजारों प्रकार की भाषाएं बोली जाती हैं। हर व्यक्ति बचपन से ही अपनी मातृभाषा या देश की भाषा से तो परिचित होता है लेकिन दूसरे देश या समाज की भाषा से नहीं जुड़ पाता। भाषा विज्ञान के जानकारों ने यूं तो भाषा के विभिन्न वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग-अलग शाखाएं बनाई हैं। यथा, हमारी ¨हदी भाषा, भाषा विज्ञान की दृष्टि से भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है। ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उप भाषाएं हैं। पास-पास बोली जाने वाली अनेक उप भाषाओं में बहुत कुछ साम्य होता है और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं।

मानव समाज के साथ ही भाषा का भी बराबर विकास होता आया है। इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। सामान्यत: भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं, यह हमारे समाज के निर्माण, विकास, अस्मिता, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान का भी महत्वपूर्ण साधन है। भाषा के बिना मनुष्य अपूर्ण है और अपने इतिहास और परंपरा से विछिन्न है। भाषा और लिपि भाव व्यक्तिकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है जबकि ¨हदी, मराठी, संस्कृत, नेपाली आदि सभी देवनागरी में लिखी जाती हैं।

भाषा के महत्व को मनुष्य ने लाखों साल पहले पहचानकर उसका निरंतर विकास किया है। भाषा में ही हमारे भाव, राज्य, वर्ग, जातीयता और प्रांतीयता झलकती है। इस झलक का संबंध व्यक्ति की मानवीय संवेदना और मानसिकता से भी होता है। जिस व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य और मानसिकता जिस स्तर की होगी, उनकी भाषा के शब्द और उनके मुख्यार्थ भी उसी स्तर के होंगे। समाज में रहकर व्यापार या लोगों से बातचीत के लिए मनुष्य के पास भाषा ही एकमात्र माध्यम है।

मनुष्य को सभ्य और पूर्ण बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है और सभी प्रकार की शिक्षा का माध्यम भाषा ही है। साहित्य, विज्ञान, अर्थशास्त्र आदि सभी क्षेत्रों में प्रारंभिक से लेकर उच्चतर शिक्षा तक हर स्तर पर भाषा का महत्व स्पष्ट है। जीवन के सभी क्षेत्रों में किताबी शिक्षा हो या व्यवहारिक शिक्षा, यह भाषा के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। विश्व में विज्ञान से लेकर भाषा विज्ञान तक सभी क्षेत्रों में नए-नए शोध होते रहते हैं। इनमें अध्ययन व शोध लेखन के लिए नए-नए शब्द रचे जाते हैं। इन शब्दों से संचय भाषा के द्वारा सामाजिक-वैज्ञानिक विकास की अभिव्यक्ति होती है।

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