Hindi, asked by vimleshanil8, 9 months ago

निबंध लिखिए कल्पना कीजिए कि आप गर्मियों के अवकाश में अपने ननिहाल के गांव जाए तो किस प्रकार से वहां सुधार के कार्यक्रम करेंगे तथा ग्रामीण समुदाय को कोरोनावायरस से किस प्रकार सचेत रहने के लिए सुझाव देंगे ​

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Answered by dhruvsingla222
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Answer:

बचपन में गर्मी की छुट्टी की बात सुनकर बस एक ही बात जहन में आती थी नानी का घर। मैं इस दिन का सालभर बेसब्री से इंतजार करती थी कि कब छुट्टियां शुरू हों और गांव जाने का मौका मिले। मैं अपने साथ कैरमबोर्ड, बैडमिंटन और न जाने कितने खिलौने ले जाती थी, लेकिन वहां जाने के बाद इन्हें भूल जाती थी। मुझे हाथ से बनाए गए मिट्टी के खिलौने, पुरवे से बनाया गया तबला, सिकड़ी, गिट्टियां खेलना ज्यादा अच्छा लगता था। वहां जाने पर ऐसा लगता कि मानो चैन और सुकून कहीं है, तो वो बस यहीं है। मुझे वो नानी के घर बिताए गए पल आज भी बहुत याद आते हैं। मैं भरी दोपहरी में दोस्तों के साथ निकल पड़ती थी। हाथ में नमक की पुड़िया होती थी, क्योंकि छिपकर पेड़ से तोड़कर अमिया खाने का मजा ही कुछ और होता था। दूसरों के खेतों से तोड़े गए टमाटर और जामुन से भरी थैलियां देखकर जो सुकून मिलता था, वो आज पैसों से भरा पर्स देखकर भी नहीं मिलता है। दिनभर घूमकर जब घर पहुंचती थी तो मम्मी का तमतमाया चेहरा देख सारी बदमाशी निकल जाती थी। और जब मम्मी पीटने आती थी, तो मुंह से बस एक ही शब्द निकलता था 'नानी'। मुझे वो तपती दोपहरी आज भी बहुत याद आती है। मेरे पहुंचने से पहले ही नानी सत्तू, लाई, अचार के मर्तबान तैयार कर लेती थी। पता था उन्हें दो महीने तक एक आफत की पुड़िया को झेलना है। नानी के घर के ठीक सामने एक नदी थी। आधे से ज्यादा समय वहीं पर छपाक-छई में गुजर जाता था। बिजली नहीं थी, लेकिन पेड़ की वो ठंडी बयार एसी को भी मात देती थी। शाम होते ही चारों तरफ उड़ते जुगनुओं को देखकर ऐसा लगता था जैसे किसी ने एक साथ कई छोटी-छोटी लालटेन जला दी हों। मुझेवो जुगनुओं भरी शाम आज भी बहुत याद आती है। मुझे आज भी याद आता है छत पर अपनी पंसदीदा जगह पर सोने के लिए झगड़ा करना और जगह नहीं मिलने पर नानी की गोद में सिर रखकर सो जाना। हालांकि नींद जल्दी नहीं आती थी, क्योंकि खुले आसमाने के तले लेटकर तारों को टिमटिमाते देखने का मौका रोज-रोज कहां मिलता था। सच में, ऐसा लगता था जैसे एक बड़ी-सी थाली में किसी ने सफेद मोती बिखेर दिए हों। वहीं पर मैंने पहली और आखिरी बार दो तारों को एक साथ टूटते हुए देखा था। तारें गिनते-गिनते कब मैं सो जाती थी, पता ही नहीं चलता था। वो सितारों के आंचल में लिपटी हुई रात आज भी बहुत याद आती है।

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