निबंध लेखन महामारी में जनजीवन
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कोरोना महामारी में जीवन दर्शन
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कोरोना महामारी के प्रकोप से
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प्रभावित हो रही गतिशील क्रियाएँ
रफ्तार भी थी, अग्रसर था जीवन
ब्रेक से लग गया, ठहरा विकास का वाहन।
आतंकित है दुनिया इस विनाश से
देखा न था कभी ऐसा रूप विपदा का
मुँह छिपाकर भ्रमण हो रहा
मिलन भी दो गज दूरी के फांसले में हो रहा।
जीतेगा फिर भारत इस आशा में
हर संभव प्रयास को देश एकजुट है
प्रकृति मानो संदेश दे रही
हुई है क्षति जो, उसकी भरपाई हो रही।
श्रमिक पलायन से यह सिद्ध हुआ
रोजगार छिन गए, आश्रय न रहा
इस तरह बदल रही कसौटी जीवन की
एक ओर उम्मीद है, कहीं बर्बाद जिंदगी।
लॉकडाउन में अव्यवस्थित जीवन
जैसे पिंचरे में कैद परिंदा
बिना जुर्म के हम सजा भुगत रहे
अपराधी सीमा पर नजर गढ़ाये।
चट्टान की भाँति डटे हैं वीर, हिन्द के
काल बनकर दहाड़ लगा रहे शेरों के जैसे
स्वदेशी क्रांति और वीरों के शौर्य से
विफल ड्रैगन के षड्यंत्र दोगलेपन वाले।
आँख खुले कि समाचार मिलता है
कोरोना संक्रमण विनाश का खेल चलता है
योग आयुर्वेद और विज्ञान के प्रयोग से
रोशन होगा जग, प्रयत्न चल रहा है।
वर्तमान स्थिति में जल्द होगा परिवर्तन
जनमानस के जीवन में फिर होगा कुशल मंगल
किताबों से हटकर जो शिक्षा मिलती है
वही असल में जिंदगी होती है।
कोरोना महामारी में जीवन दर्शन
यह था एक संक्षिप्त सा वर्णन।
---- अभिनव बहुगुणा