निबंध मुड़ो प्रकृति की ओर ३०० से ४०० शब्द का
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संकेत बिंदु –मानव प्रकृति का अभिन्न अंग है –प्रकृति से छेड़छाड़ भयावह –प्रकृति की रक्षा से मानव की रक्षा संभव है
मानव प्रकृति का अभिन्न अंग है। पर यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि मानव प्रकृति से दूर होता चला जा रहा है। मानव अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए प्रकृति से बहुत छेड़छाड़ करता रहा है। यह भयावह स्थिति तक जा पहुंची है। प्रकृति ने भी मानव की ओर से अपना मुंह मोड़ लिया है। वह अब अपना बदला ले रही है। ग्लोबल वार्मिंग इसी का परिणाम है। पर्यावरण निरंतर प्रदूषित होता चला जा रहा है। मनुष्य के लिए न तो स्वच्छ वायु मिल पाती है और न स्वच्छ जल। मौसम-चक्र भी गड़बड़ा गया है। हमें यह याद रखना होगा कि प्रकृति की रक्षा से ही मानव की रक्षा संभव है। हमें पुनः प्रकृति की ओर मुड़ना होगा। हमें प्रकृति के स्वरूप की रक्षा करनी होगी। प्रकृति की रक्षा के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है।
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