नीचे २ गधांश दिए गए है। किसी गधांश को ध्यानपूर्वक पढिए और उसपर आधारित प्रश्नों के उत्तर दिजिए।
गधांश 1 | मनुष्य जन्म से ही अहंकार का इतना विशाल बीझ लेकर आता है कि उसकी दृष्टि सदैव दूसरों के दोषों पर ही टिकती है। आत्म निरीक्षण को भूलाकर साधारण मानव केवल पर छिद्रोन्वेषण में ही अपना जीवन बिताना चाहता है। इसके मूल में उसकी ईष्या की दाहक दुष्प्रवृत्ति कार्यशील रहती है। दूसरे की सहज उन्नति को मनुष्य अपनी ईष्या के वशीभूत होकर बचा नहीं पाता और उसके गुणों को अनदेखा करके केवल दोषों और दुर्गुणों को ही प्रचारित करने लगता है। इस प्रक्रिया में वह इस तथ्य को भी आत्मविस्तृत कर बैठता है की ईष्य का दाहक स्वरूप स्वयं उसके समय, स्वास्थ्य और सदवृत्तीयों के लिए कितना विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। परनिंदा को हमारे शास्त्रों में भी पास बताया गया है। वास्तव में मनुष्य अपनी न्यूनताओं, अपने दुर्गुणों की और इष्टि उठाकर देखणा भी नहीं पाहता क्योंकि स्वयं को पहचानने कि यह प्रक्रिया उसके लिए बहुत कष्टकारी है। अपनी वास्तविकता अपनी क्षुद्रता उसे इतना ध करती है कि वह उसे भुलाकर दूसरों के दोषों को दूर ही अपना दूःख हल्का करना चाहता है। विवेकशील जानी पुरुष अपने बारे में इस वास्तविकता से मुख मोड़ने के स्थान पर आत्मनिरीक्षण को ही श्रेयस्कर समझते है। इस आत्मनिरीक्षण के कठीण रास्ते पर चलकर मनुष्य अपनी दुष्प्रवृत्तियों को पहचान कर उनसे मुक्त प्राप्त कर सकता है। मनिषियो की गंभीर वाणी इसी कारण सदैव अपने दोषों की टूढने का ही उपदेश देती है किंतु इस व्यवहार में वो जानी व्यक्ति हो आते हैं जो अपने विषय में कटू सत्यों का सामना करने को तत्पर रहते हैं। संत कबीर के एक दोहे में इसी तथ्य का निरुपण बड़े सरल शब्दों में किया गया है
बुरा जो देखने में चला, बुरा न मिलाया कोय जो मन देखू अपना, मुझ सा बुरा न कोय
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन किजिए।
१) ईष्या किसे कहते हैं? (१) अपने अहंकार को
(अंक-५)
२) मन में छुपे दूसरों के प्रति दुष्प्रवृति ३) दुसरे के गुणों को अनदेखा करना ४) दुर्गुणों को प्रक्रिया मनुष्य के लिए कष्टकारी है?
(१) अपनी गलती माननी २) दुसरों का अच्छा बना ३) स्वयं को पहचानना ४) सत्य न स्वीकारना (३) विवेकशील व्यक्ति क्या अच्छा मानते हैं?
(१) बाटु शब्दों को सुनना २) दुसरो का आत्मनिरीक्षण करना ३) स्वयं का आत्मनिरक्षण करना (४) अपनी वाह वाह सुनना
गधांश के आधारपर मनुष्य किस तरह मुक्ति प्राप्त कर सकता
१) झूठ बोलकर २) सदवृत्तियों को छोड़कर
२) स्वास्थ शांति
है?
३) ईष्या करके
३) वास्तविकता
गधारा 2
५) अपनी दुष्प्रवृत्तियों
४) न्यूनताजा, दुर्गुणो
(अंक-५)
●) ईष्वों से हम क्या हो रहे हैं?
१) विवेक, ज्ञान, सद्वृत्तियाँ
Answers
Answer:
नीचे २ गधांश दिए गए है। किसी गधांश को ध्यानपूर्वक पढिए और उसपर आधारित प्रश्नों के उत्तर दिजिए।
गधांश 1 | मनुष्य जन्म से ही अहंकार का इतना विशाल बीझ लेकर आता है कि उसकी दृष्टि सदैव दूसरों के दोषों पर ही टिकती है। आत्म निरीक्षण को भूलाकर साधारण मानव केवल पर छिद्रोन्वेषण में ही अपना जीवन बिताना चाहता है। इसके मूल में उसकी ईष्या की दाहक दुष्प्रवृत्ति कार्यशील रहती है। दूसरे की सहज उन्नति को मनुष्य अपनी ईष्या के वशीभूत होकर बचा नहीं पाता और उसके गुणों को अनदेखा करके केवल दोषों और दुर्गुणों को ही प्रचारित करने लगता है। इस प्रक्रिया में वह इस तथ्य को भी आत्मविस्तृत कर बैठता है की ईष्य का दाहक स्वरूप स्वयं उसके समय, स्वास्थ्य और सदवृत्तीयों के लिए कितना विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। परनिंदा को हमारे शास्त्रों में भी पास बताया गया है। वास्तव में मनुष्य अपनी न्यूनताओं, अपने दुर्गुणों की और इष्टि उठाकर देखणा भी नहीं पाहता क्योंकि स्वयं को पहचानने कि यह प्रक्रिया उसके लिए बहुत कष्टकारी है। अपनी वास्तविकता अपनी क्षुद्रता उसे इतना ध करती है कि वह उसे भुलाकर दूसरों के दोषों को दूर ही अपना दूःख हल्का करना चाहता है। विवेकशील जानी पुरुष अपने बारे में इस वास्तविकता से मुख मोड़ने के स्थान पर आत्मनिरीक्षण को ही श्रेयस्कर समझते है। इस आत्मनिरीक्षण के कठीण रास्ते पर चलकर मनुष्य अपनी दुष्प्रवृत्तियों को पहचान कर उनसे मुक्त प्राप्त कर सकता है। मनिषियो की गंभीर वाणी इसी कारण सदैव अपने दोषों की टूढने का ही उपदेश देती है किंतु इस व्यवहार में वो जानी व्यक्ति हो आते हैं जो अपने विषय में कटू सत्यों का सामना करने को तत्पर रहते हैं। संत कबीर के एक दोहे में इसी तथ्य का निरुपण बड़े सरल शब्दों में किया गया है
बुरा जो देखने में चला, बुरा न मिलाया कोय जो मन देखू अपना, मुझ सा बुरा न कोय
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन किजिए।
१) ईष्या किसे कहते हैं? (१) अपने अहंकार को
(अंक-५)
२) मन में छुपे दूसरों के प्रति दुष्प्रवृति ३) दुसरे के गुणों को अनदेखा करना ४) दुर्गुणों को प्रक्रिया मनुष्य के लिए कष्टकारी है?
(१) अपनी गलती माननी २) दुसरों का अच्छा बना ३) स्वयं को पहचानना ४) सत्य न स्वीकारना (३) विवेकशील व्यक्ति क्या अच्छा मानते हैं?
(१) बाटु शब्दों को सुनना २) दुसरो का आत्मनिरीक्षण करना ३) स्वयं का आत्मनिरक्षण करना (४) अपनी वाह वाह सुनना
गधांश के आधारपर मनुष्य किस तरह मुक्ति प्राप्त कर सकता