Hindi, asked by BrainlyHelper, 1 year ago

नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए −
(क) जाकी अँग-अँग बास समानी
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै

Answers

Answered by nikitasingh79
73

उत्तर :

(क) भक्त स्वयं गुणों से रहित है। वह पानी के समान रंग रहित  और सुगंध रहित है। लेकिन भगवान रूपी चंदन की निकटता पाकर वह धन्य हो जाता है। वह गुणों की प्राप्ति कर लेता है। ईश्वरीय भक्ति उसे पापों से मुक्त करके उसके जीवन को सार्थकता प्रदान करती है।


(ख) भक्त तो सदा भवसागर पार करवाने वाले ईश्वर के प्रति खुद को अर्पित कर देना चाहता है । वह हर समय उसी के रूप दर्शन करने की इच्छा करता है। जिस प्रकार चकोर अपने प्रिय चांद को निहारना चाहता है ,उसी प्रकार संत रैदास भी प्रभु रूपी चांद को एकटक देखना चाहते हैं ; वे अपने ध्यान को किसी दूसरी और नहीं लगाना चाहते।


(ग) कवि कहता है कि ईश्वर सृष्टि के हर कण-कण में बसा हुआ है। हर प्राणी में उसी की ज्योति जगमग आ रही है ।उसी के कारण हम जीवित है वही हमारी सांसो को चला रहा है।


(घ) कवि बताना चाहता है कि जीवो पर जैसी कृपा और दया ईश्वर करता है, वैसी कृपा और दया कोई और नहीं कर सकता। वही दीन दुखियों का रक्षक है उसके बिना मनुष्य का मददगार कोई और नहीं है।


(ड़) परमात्मा किसी से डरता नहीं। वह तो नीच को भी उच्च बना देता है। वह अपने भक्तों पर कृपा और दया करके उनके जीवन का उद्धार कर देता।


आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।

Answered by SweetCandy10
17

Answer:-

(क) भक्त स्वयं गुणों से रहित है। वह पानी के समान रंग रहित  और सुगंध रहित है। लेकिन भगवान रूपी चंदन की निकटता पाकर वह धन्य हो जाता है। वह गुणों की प्राप्ति कर लेता है। ईश्वरीय भक्ति उसे पापों से मुक्त करके उसके जीवन को सार्थकता प्रदान करती है।

(ख) भक्त तो सदा भवसागर पार करवाने वाले ईश्वर के प्रति खुद को अर्पित कर देना चाहता है । वह हर समय उसी के रूप दर्शन करने की इच्छा करता है। जिस प्रकार चकोर अपने प्रिय चांद को निहारना चाहता है ,उसी प्रकार संत रैदास भी प्रभु रूपी चांद को एकटक देखना चाहते हैं ; वे अपने ध्यान को किसी दूसरी और नहीं लगाना चाहते।

(ग) कवि कहता है कि ईश्वर सृष्टि के हर कण-कण में बसा हुआ है। हर प्राणी में उसी की ज्योति जगमग आ रही है ।उसी के कारण हम जीवित है वही हमारी सांसो को चला रहा है।

(घ) कवि बताना चाहता है कि जीवो पर जैसी कृपा और दया ईश्वर करता है, वैसी कृपा और दया कोई और नहीं कर सकता। वही दीन दुखियों का रक्षक है उसके बिना मनुष्य का मददगार कोई और नहीं है।

(ड़) परमात्मा किसी से डरता नहीं। वह तो नीच को भी उच्च बना देता है। वह अपने भक्तों पर कृपा और दया करके उनके जीवन का उद्धार कर देता।

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