निज भाषा उन्नति का है किस कवि की rachanaपंक्ति है
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Kavishala Labs
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