Hindi, asked by arshadroni7, 2 months ago

निज गौरव का नित ज्ञान रहे , हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे । मरणोत्तर गुंजित गान रहे​

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Answered by seandsouza847
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Answer:

निज गौरव का नित ज्ञान रहे

हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।

सब जाय अभी पर मान रहे

मरणोत्तर गुंजित गान रहे।

कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो न निराश करो मन को।।

Explanation:

व्याकुल से देव चले साथ में, विमान में

पिछड़े तो वाहक विशेषता से भार की

अरोही अधीर हुआ प्रेरणा से मार की

दिखता है मुझे तो कठिन मार्ग कटना

अगर ये बढ़ना है तो कहूँ मैं किसे हटना?

बस क्या यही है बस बैठ विधियाँ गढ़ो?

अश्व से अडो ना अरे, कुछ तो बढ़ो, कुछ तो बढ़ो

बार बार कन्धे फेरने को ऋषि अटके

आतुर हो राजा ने सरौष पैर पटके

क्षिप्त पद हाय! एक ऋषि को जा लगा

सातों ऋषियों में महा क्षोभानल आ जगा

भार बहे, बातें सुने, लातें भी सहे क्या हम

तु ही कह क्रूर, मौन अब भी रहें क्या हम

पैर था या सांप यह, डस गया संग ही

पमर पतित हो तु होकर भुंजग ही

राजा हतेज हुआ शाप सुनते ही काँप

मानो डस गया हो उसे जैसे पिना साँप

श्वास टुटने-सी मुख-मुद्रा हुई विकला

"हा ! ये हुआ क्या?" यही व्यग्र वाक्य निकला

जड़-सा सचिन्त वह नीचा सर करके

पालकी का नाल डूबते का तृण धरके

शून्य-पट-चित्र धुलता हुआ सा दृष्टि से

देखा फिर उसने समक्ष शून्य दृष्टि से

दीख पड़ा उसको न जाने क्या समीप सा

चौंका एक साथ वह बुझता प्रदीप-सा -

“संकट तो संकट, परन्तु यह भय क्या ?

दूसरा सृजन नहीं मेरा एक लय क्या ?”

सँभला अद्मय मानी वह खींचकर ढीले अंग -

“कुछ नहीं स्वप्न था सो हो गया भला ही भंग.

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