नीकी पै फीकी लगै, बिन अवसर की बात।
जैसे बसत युद्ध में, रस शृंगार न सुहात।।
अपनी पहुँचि बिचारि के, करतब करिए दौर।
तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर।।
कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फलै, केतक सींचौ नीर
-वृन्द
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