निकसि कमंडल तै उमडि नभ-मंडल-खंडित।धाई धारअपार सौं बायु बिहंडति॥भयौ घोर अति शब्द धमक सौं त्रिभुवन तरजे।महामेघ मिलि मनहुँ एक संगहिं सब गरजे॥की व्याख्या बताएं
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जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
आधुनिक काल के ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में 1866 ई. में हुआ था। ‘रत्नाकर’ जी के पिता श्री पुरुषोत्तमदास भारतेन्दु जी के समकालीन, फ़ारसी भाषा के विद्वान् और हिन्दी काव्य के मर्मज्ञ थे। 1891 ई. में वाराणसी के क्वीन्स कॉलेज से बी.ए. की डिग्री प्राप्त करके 1902 ई. में अयोध्या-नरेश के निजी सचिव नियक्त हुए और 1928 ई. तक इसी पद पर रहे। राजदरबार से सम्बद्ध होने के कारण इनका रहन-सहन सामन्ती था, लेकिन इनमें
प्राचीन धर्म, संस्कृति और साहित्य के प्रति गहरी आस्था थी। इन्हें प्राचीन भाषाओं का अच्छा ज्ञान था तथा ज्ञान-विज्ञान की अनेक शाखाओं में गति भी थी। इन्होंने ‘साहित्य-सुधानिधि’ और ‘सरस्वती’ के सम्पादन, ‘रसिक मण्डल’ के संचालन तथा ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना एवं उसके विकास में योगदान दिया। 1932 ई. में इनका देहावसान हरिद्वार में हुआ।