नाखूनों का बढ़ना एक सहज प्रवृत्ति है कथन को स्पष्ट करते हुए नाखून क्यों बढ़ते हैं निबंध का सारांश लिखिए
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‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ निबंध का सारांश...
‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ निबंध ‘हजारी प्रसाद द्विवेदी’ जी द्वारा लिखा गया एक विचारोत्तेजक निबंध है। इस निबंध में द्विवेदी जी हमें यह बताते हैं कि आज से दो हजार साल पहले भारत में नाखूनों को सजाने-संवारने की कला अपने शिखर पर थी। यानि नाखून सजाना-सवांरना उस समय श्रंगार का प्रतीक होता था। वह नाखून के सकारात्मक पक्ष को बताते हैं, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि मनुष्य ने अपनी पाशविकता से नाखून का दुरुपयोग किया है।
द्विवेदी जी के कहने का तात्पर्य यह है कि जो वस्तुएं मनुष्य को पतन की ओर से खेलती हैं, उनको भी भारतीय परंपरा में कला का रूप देकर मनुष्य के अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया गया है। लेखक ने इस निबंध में सबसे ज्वलंत प्रश्न उठाया है कि मनुष्य अपनी पाशविकता के बंधन से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहा, वह नाखून बढ़ने को पाशविकता का प्रतीक मानते हैं, वह नाखूनों को हथियार का भी प्रतीक मानते हैं।
अपनी इस बात को आगे बढ़ाते हुए वह प्राणी विज्ञान के सिद्धांत का सहारा लेते हैं। प्राणी विज्ञान के अनुसार मनुष्य के शरीर में कुछ ऐसी प्रवृत्तियां होती हैं, जिसे ना तो उसे सीखना होता है ना उसे उन बच्चों के लिए कोई अभ्यास करना होता है। जैसे बालों का बढ़ना, नाखूनों का बढ़ना, आँखों की पलकों का झपकना आदि यह वृत्तियां सहज रूप से उत्पन्न होती हैं। नाखूनों का बढ़ना भी एक ऐसी ही सहज वृत्ति है, यह मनुष्य की उस अवस्था का प्रतीक है, जब मनुष्य आदिम था और बर्बर अवस्था में रहता था, लेकिन आज के इस सभ्य समाज में मनुष्य उस बात को भूल गया है कि नाखूनों का बढ़ना उसके उसी आदिम स्वरूप का प्रतीक है। बाहरी तौर पर तो वह अपनी पाशविकता छूट चुका है, लेकिन उसके अंदर अभी भी पशुत्व है।
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