निम्न लिखित गद्यांश को पडकर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
दूसरों की भलाई के विषय में सोचना तथा उसके लिए कार्य करना महान गुण है । वक्ष अपने लिए
नहीं, औरो के लिए फल धारण करते है, नदियाँ भी अपना जल स्वयं नही पीती । परोपकारी मनुष्य भी संपति
का संचय औरो के कल्याण के लिए करते है । मानव जीवन भी एक दूसरे के सहयोग पर निर्भर है। मनुष्यता
की कसौटी परोपकार है । परोपकार का सुख लौकिक नही, अलौकिक है । जब कोई व्यक्ति निबर्थ भाव से
किसी की सेवा करता है वो उस क्षण वह मनुष्य नही, दीन दयालु के पद पर पहुँच जाता है । वह दिव्य सुख
प्राप्त करता है। उस सुख की तुलना में धन-दौलत कउछ भी नही है । यहाँ दधिचि जैसे ऋषि हुए जिन्होने
उपनी जाती के लिए अपने शरीर की हडिजयाँ दान में दे दी। बुद्ध महावीर, अशोक गांधी, अरविंद जैसे
महापुरुषो के जिवन परोपकार के कारणा ही महान बन सके । परोपकार की भावना ही सच्ची ईश्वर पूजा है।
भूखो को अनदेना, निवसन को वस्त्र देना प्यासे को पानी पिलाना, निराश को सात्वना देना, रोगी की सेवा
करना और भूले- भटके को रास्ते पर लाना प्रत्येक मानव का धर्म है और यह धर्म ही परोपकार है । मनवता
की पहचान परोपकार से ही हो सकती है।
1. महान गुण क्या है दो-तीन उदाहरण दीजिए।
2 अलौकिक और स्वार्थ शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
3. मनुष्य को दीन-दयालु कब कहा जाता है ?
4. दो-महापुरुषों के नाम लिखिए और उन्होने कौनसा परोपकार किए है ?
5. मनवता की पहचान परोपकार से ही होता है। स्पष्ट कीजिए।
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Explanation:
दूसरों की भलाई के विषय में सोचना तथा उसके लिए कार्य करना महान गुण है
अलौकिक का विलोम शब्द लौकिक होता है
स्वार्थ का विलोम शब्द परमाथ्र होता है
जब कोई व्यक्ति निर्भरता से किसी की सेवा करता है वह उस क्षण वह मनीष दयालु के पद पर पहुंच जाता है
बुद्ध महावीर अशोक गांधी
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