निम्नलिखित गद्यांश की सन्दर्भ,प्रसंगसहित व्याख्या कीजिए
"क्रोध शांति भंग करने वाला मनोविकार है । एक का क्रोध दूसरे में भी क्रोध का संचार करता है।
जिसके प्रति क्रोध प्रदर्शन होता है वह तत्काल अपमान का अनुभव करता है और इस दुःख पर
उसकी त्योरी भी चढ़ जाती है। यह विचार करने वाले बहुत थोड़े निकलते हैं कि हम पर जो क्रोध
प्रकट किया जा रहा है, वह उचित है या अनुचित।"
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क्रोध शांति भंग करने वाला मनोविकार है । एक का क्रोध दूसरे में भी क्रोध का संचार करता है। जिसके प्रति क्रोध प्रदर्शन होता है वह तत्काल अपमान का अनुभव करता है और इस दुःख पर उसकी त्योरी भी चढ़ जाती है। यह विचार करने वाले बहुत थोड़े निकलते हैं कि हम पर जो क्रोध प्रकट किया जा रहा है, वह उचित है या अनुचित।"
संदर्भ ► यह गद्यांश आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘क्रोध’ से लिया गया है। इस निबंध के माध्यम से आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने क्रोध के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों की विवेचना की है। उन्होने बताया है कि जीवन में हमें क्रोध से क्या लाभ या क्या हानियां होती हैं। व्याख्या ► शुक्ला जी कहते हैं कि क्रोध एक तरह से मन की बीमारी है। यदि कोई एक व्यक्ति क्रोध करता है। यदि एक व्यक्ति क्रोध करता है तो सामने वाला व्यक्ति उस क्रोध के कारण अपमान भी महसूस करता है और इस अपमान के दुख में उसे भी क्रोध आ जाता है। इस तरह यदि क्रोध एक संक्रामक रोग की तरह है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल जाता है। शुक्ल जी कहते हैं कि बहुत कम लोगों को इस बात का आभास हो पाता है कि उन्होंने जो क्रोध किया था, वह सही था या गलत। यानि बहुत से कम लोग ही क्रोध के सकारात्मक या नकारात्मक पक्ष के बारे में सोचते हैं। वह केवल क्रोध कर देते हैं उस समय यह नहीं सोचते-विचारते कि इस क्रोध उन्हें क्या नुकसान हो सकता है। यदि सब क्रोध के सकारात्मक या नकारात्मक पक्ष को विचार करने लगे तो शायद क्रोध करने से बच जाएं या सोच-समझकर क्रोध करें।
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