Hindi, asked by Ritvikskr6111, 10 months ago

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
ज्ञान राशि के संचित कोष ही का नाम साहित्य है। सब तरह के भावों को प्रकट करने की योग्यता रखने वाली और निर्दोष होने पर भी, यदि कोई भाषा अपना निज का साहित्य नहीं रखती तो वह, रूपवती भिखारिनी की तरह, कदापि आदरणीय नहीं हो सकती। उसकी शोभा, उसकी श्रीसम्पन्न्ता, उसकी मान - मर्यादा उसके साहित्य ही पर अवलंबित रहती है। जाति-विशेष के उत्कर्षापकर्ष का, उसके ऊँच-नीच भावों, उसके धार्मिक विचारों और सामाजिक संघटन का, उसके ऐतिहासिक घटनाचक्रों और राजनैतिक स्थितियों का प्रतिबिम्ब देखने को यदि कहीं मिल सकता है तो उसके ग्रन्थ-साहित्य ही में मिल सकता है। साहित्य में जो शक्ति छिपी है वह तोप, तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पायी जाती, जो साहित्य मुर्दों को भी जिन्दा करने वाली संजीवनी औषधि का आधार है, जो साहित्य पतितों को उठाने वाला और उत्थितों के मस्तक को उनन्नत करने वाला है, उसके उत्पादन और संवर्धन की चेष्टा जो जाति नहीं करती, वह अज्ञानान्धकार के गर्त में पड़ी रहकर किसी दिन अपना अस्तित्व ही खो बैठती है।
अतएव समर्थ होकर भी जो मनुष्य इतने महत्वशाली साहित्य की सेवा और अभिवृद्धि नहीं करता अथवा उससे अनुराग नहीं रखता, वह समाजद्रोही है, वह देशद्रोही है, वह जातिद्रोही है, वह आत्मद्रोही और आत्महंता भी है।

(क) साहित्य को संजीवनी औषधि का आधार क्यों कहा गया है?
(ख) साहित्य के प्रति अनुराग ना रखने वालों की तुलना किससे की गई है?
(ग) साहित्य को समाज का आईना क्यों कहा गया है?
(घ) जिस भाषा का अपना साहित्य नहीं होता उसकी स्थिति कैसी है?
(ङ) साहित्य के संवर्धन के लिए प्रयास नहीं करने पर समाज की क्या स्थित होती है?
(च) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए।

Answers

Answered by shishir303
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गद्यांश के प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार होंगे..

(क)

साहित्य को संजीवनी औषधि इसलिए कहा गया है, क्योंकि साहित्य में वह शक्ति होती है जो पतित और निकृष्ट लोगों को भी ऊँचे स्तर तक पहुँचा देती और मुर्दों को भी जिंदा कर देती है। इसलिए साहित्य को संजीवनी औषधि कहा गया है।

(ख)

जो व्यक्ति साहित्य के प्रति अनुराग नहीं रखते हैं, वह समाजद्रोही, देशद्रोही या आत्म द्रोही होते हैं।

(ग)

साहित्य हमारे समाज का आईना है क्योंकि साहित्य के माध्यम से ही समाज के वास्तविक स्वरूप के दर्शन होते हैं।

(घ)

जिस भाषा का अपना साहित्य नहीं होता, वह भाषा एक भी भिखारिन की तरह होती है और उस भाषा का कोई सम्मान नहीं होता। किसी भाषा समृद्धि उसके साहित्य पर निर्भर है। जितना उस भाषा का साहित्य उत्कृष्ट होगा वो भाषा उतनी ही समृद्ध होगी।

(ङ)

यदि साहित्य के संवर्धन के लिए प्रयास नहीं किया जाए तो साहित्य अज्ञान के अंधेरे में विलुप्त होकर अपना अस्तित्व खो सकता है।

(च)

उपयुक्त गद्यांश के उपयुक्त शीर्षक होगा... ‘साहित्य की महत्ता’

Answered by studymaterial72
37

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