निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए।
उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए नामू की माँ ने अपने बेटे से कहा, “जा, कुल्हाड़ी लेकर पलाश के पेड़ से कुछ छाल उतार ला।” “अभी लाया माँ।” कहकर नामू ने कुल्हाड़ी उठाई और जंगल की ओर निकल गया। वहाँ उसने पलाश के पेड़ की छाल उतारी और फिर घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में विचार करने लगा कि जब मैं कुल्हाड़ी से पेड़ पर प्रहार करता था, तो एक आवाज़ पेड़ से निकलती थी, कहीं वह आवाज़ पेड़ की कराह तो नहीं थी ? जब मैं कुल्हाड़ी से पेड़ पर प्रहार करता होऊँगा, तो पेड़ को पीड़ा भी तो होती होगी। नामू ने घर आकर पलाश की छाल माँ को सौंप दी और स्वयं घर से दूर कुल्हाड़ी लेकर जा बैठा। वहाँ बैठकर उसने कुल्हाड़ी से अपना पैर रगड़ना शुरू किया। रगड़ के साथ पाँव में पीड़ा भी होती थी, खून बहता था और नामू के मुँह से हल्की-हल्की चीखें भी निकलती थीं। यह सब उसने पेड़ की पीड़ा का अनुभव करने के लिए किया था। कुछ देर बाद वह घर लौट आया और माँ से खाना माँगा। उसके चेहरे पर पीड़ा की स्पष्ट रेखाएँ उभर आई थीं, मगर वह चुप था। माँ ने देखा, लेकिन कुछ समझी नहीं। एकाएक माँ की दृष्टि उसके कपड़ों पर पड़ी, जो खून से लाल हो चुके थे। माँ ने घबराकर पूछा, “यह क्या हुआ, नामू ?” “कुछ नहीं माँ, तुम चिन्ता मत करो ।” माँ और अधिक घबराकर बोली, “चिन्ता कैसे न करूँ बेटा, तेरे शरीर का खून देखकर मैं चिन्ता नहीं करूँगी, तो फिर और कौन चिन्ता करेगा?” नामू कहने लगा, “माँ तुमने पलाश की छाल मँगवाई थी, तो कुल्हाड़ी से छाल उतारते हुए, मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि पेड़ कराह रहा है और जैसे उसे पीड़ा हो रही है। अपने पाँव पर कुल्हाड़ी की रगड़ से मैं यह जानना चाहता था, कि क्या सभी को एक-सी पीड़ा होती है ?” बेटे की बात सुनकर, माँ का हृदय भर आया। माँ की आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। उसने नामू को गले लगाते हुए कहा, “लगता है, मेरे पुत्र के रूप में किसी संत ने जन्म लिया है। बेटे, तू पराये दुःख से दुःखी होकर, उस दुःख का अनुभव करना चाहता था; पराया दुःख भी पेड़ का, जिसमें तुझे प्राण दिखाई दिये। अवश्य ही, तू एक दिन बड़ा संत बनेगा ।” इस प्रकार माँ ने उसे संत बनने का आशीर्वाद दिया। आगे चलकर यह ‘नामू’ नामदेव के नाम से महाराष्ट्र का प्रसिद्ध संत हुआ। वास्तव में दया, धर्म का भाव रखना और दूसरे के दुःख को महसूस करना संतों का स्वभाव होता है। आज अपने पर्यावरण को बचाने के लिए नामदेव जैसे संतों की आवश्यकता है, जिनके मन में न केवल जीवों के प्रति ही दया की भावना हो, बल्कि पेड़-पौधों के लिए भी अपनेपन का भाव हो। आज के स्वार्थी मानव ने प्रकृति के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार किया है, वह निन्दनीय है क्योंकि मानव के लोभ ने धरती के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है।
Answer these question-_-
(i) नामू को माँ ने क्या आदेश दिया था ? माँ के आदेश का पालन करते समय उसने क्या विचार किया?
(ii) घर आकर नामू ने क्या किया और क्यों ?
(iii) माँ क्या देखकर चिन्तित हुई ? उसका हृदय क्यों भर आया ?
(iv) संत के स्वभाव की क्या विशेषता होती है ? आगे चलकर नामू किस रूप में प्रसिद्ध हुआ ?
(v) आपको इस गद्यांश से क्या शिक्षा मिली ? पेड़-पौधों की सुरक्षा क्यों आवश्यक है ?
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Answer:
(i) नामू की माँ ने नामू को कुल्हारी की मदद से पलाश के पेड़ से कुछ चल उतर लेन को कहा ....मा के आदेश का पालन करते समय नामू ने विचार किया " जब मैं कुल्हाड़ी से पेड़ पर प्रहार करता था, तो एक आवाज़ पेड़ से निकलती थी, कहीं वह आवाज़ पेड़ की कराह तो नहीं थी ? जब मैं कुल्हाड़ी से पेड़ पर प्रहार करता होऊँगा, तो पेड़ को पीड़ा भी तो होती होगी "
(ii) घर आकर नामू ने पलाश की छाल माँ को सौंप दी और स्वयं घर से दूर कुल्हाड़ी लेकर बैठ गया वहाँ बैठकर उसने कुल्हाड़ी से अपना पैर रगड़ना शुरू किया क्यूंकि वह पेड़ की पीड़ा का अनुभव करना चाहता था।
(iii) मा उसके कपरे पर लाल ख़ून के निशान देख कर चिन्तित हुई। जब उनके बेटे ने उनसे कहा " माँ तुमने पलाश की छाल मँगवाई थी, तो कुल्हाड़ी से छाल उतारते हुए, मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि पेड़ कराह रहा है और जैसे उसे पीड़ा हो रही है। अपने पाँव पर कुल्हाड़ी की रगड़ से मैं यह जानना चाहता था, कि क्या सभी को एक-सी पीड़ा होती है "तब मा का हृदय भर आया।
(iv)पराये दुःख से दुःखी होकर, उस दुःख का अनुभव करना; पराया दुःख भी पेड़ का, जिसमें नामू को प्राण दिखाई दिये और आगे चलकर यह ‘नामू’ नामदेव के नाम से महाराष्ट्र का प्रसिद्ध संत हुआ ।
(v) इस गद्यांश से हमें शिक्षा मिली की हमेशा दुसरको के दर्द को समाज चाहिए और उन्ही दूर करने के लिए पूरी कोषिश करनी चाहिए । इसलिये करनी चाहिए क्योंकि उनसे हम जिंदगी जिनी के लिए बहुत कुछ मिला है ।