Hindi, asked by Ujjwal981, 11 months ago

निम्नलिखित गद्यांश में नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
मैं तो यही समझता हूँ कि यदि हमें अपने समाज और देश में उन सब अन्यायों और अत्याचारों की पुनरावृत्ति नहीं करनी है, जिनके द्वारा आज के सारे संघर्ष उत्पन्न होते हैं तो हमें अपनी ऐतिहासिक, नैतिक चेतना या संस्कृति के आधार पर ही अपनी आर्थिक व्यवस्था बनानी चाहिए अर्थात् उसके पीछे वैयक्तिक लाभ और भोग की भावना प्रधान न होकर वैयक्तिक त्याग और सामाजिक कल्याण की भावना ही प्रधान होनी चाहिए । हमारे प्रत्येक देशवासी को अपने सारे आर्थिक व्यापार उसी भावना से प्रेरित होकर करने चाहिए । वैयक्तिक स्वार्थों और स्वत्वों पर जोर न देकर वैयक्तिक कर्त्तव्य और सेवा-निष्ठा पर जोर देना चाहिए और हमारी प्रत्येक कार्यवाही इसी तराजू पर तौली जानी चाहिए ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए ।
(स) हमें अपने आर्थिक व्यापार किस भावना से प्रेरित होकर करने चाहिए ?

Answers

Answered by BrainBrawler658
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Answer:

asd GA I have a nice to see you in a few days ago and he said he will get it from the beginning and I don't want to give you a call when you have to follow please let us

Answered by sindhu789
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उपर्युक्त गद्यांश में दिए गए प्रश्नों  उत्तर निम्नलिखित हैं-

Explanation:

(अ) सन्दर्भ: प्रस्तुत गद्यांश हमारी पठित पाठ्य पुस्तक हिन्दी के गद्य खण्ड में संकलित 'भारतीय संस्कृति ' नामक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक का नाम डॉ० राजेन्द्र प्रसाद है।  

(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या: लेखक का कहना है कि हमें अपनी आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन कर के देश और समाज में होने वाले अत्याचारों तथा अन्यायों को फिर से दोहराये जाने  रोका जा सकता है। आर्थिक व्यवस्था दूषित होने के कारण बहुत सारे संघर्ष उत्पन्न होते हैं। अतः हमें अपनी आर्थिक व्यवस्था का आधार नैतिक चेतना या संस्कृति द्वारा निर्धारित करना चाहिए। धन से सम्बंधित कार्य करने के लिए सदैव नैतिकता का ध्यान रखना चाहिए जिससे अन्याय, अत्याचार और संघर्ष समाप्त हो जायेंगे। प्रत्येक कार्य कर्तव्य और सेवा की भावना से करना चाहिए। जिस प्रकार तराजू दो पदार्थों के परिमाण में समन्वय बिठा कर दोनों के साथ न्याय करती हैं, ठीक उसी प्रकार हमें प्रत्येक कार्य में भोग तथा स्वार्थ का कर्तव्य और सेवा भावना के साथ समन्वय स्थापित करना चाहिए। ऐसा करने से संघर्ष की सम्भावना कम हो जाएगी।  

(स) आर्थिक व्यापार करने में वैयक्तिक त्याग, सामाजिक कल्याण, सेवा और कर्तव्य भावना की प्रधानता होनी चाहिए।  

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