निम्नलिखित गद्यांश में नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
वर्तमान युग में भारतीय संस्कृति के समन्वय के प्रश्न के अतिरिक्त यह बात भी विचारणीय है कि भारत की प्रत्येक प्रादेशिक भाषा की सुन्दर और आनन्दप्रद कृतियों का स्वाद भारत के अन्य प्रदेशों के लोगों को कैसे चखाया जाय । मैं समझता हूँ कि इस बारे में दो बातें विचारणीय हैं । क्या इस सम्बन्ध में यह उचित नहीं होगा कि प्रत्येक भाषा की साहित्यिक संस्थाएँ उस भाषा की कृतियों को संघ-लिपि, अर्थात् देवनागरी में भी छपवाने का आयोजन करें । मुझे विश्वास है कि कम से कम जहाँ तक उत्तर की भाषाओं का सम्बन्ध है, यदि वे सब अपनी कृतियों को देवनागरी में छपवाने लगें तो उनका स्वाद लगभग सारे उत्तर भारत के लोग आसानी से ले सकेंगे, क्योंकि इन सब भाषाओं में इतना साम्य है कि एक भाषा का अच्छा ज्ञाता दूसरी भाषा की कृतियों को स्वल्प परिश्रम से समझ जायेगा ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(स) कृतियों को देवनागरी लिपि में छपवाने का क्यों सुझाव दिया गया है ?
Answers
उपर्युक्त गद्यांश में दिये गये प्रश्नों के उत्तर निम्नलिखित है—
Explanation:
(अ) सन्दर्भ : प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के गद्य-खण्ड में संकलित 'भारतीय संस्कृति ' नामक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक का नाम डॉ० राजेन्द्र प्रसाद है।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या: लेखक का कहना है कि वर्तमान में हमें अपने पुराने सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाकर भारतीय संस्कृति के समन्वयात्मक स्वरुप को बनाये रखना होगा। भारतीय संस्कृति के समन्वयात्मक स्वरुप को विभिन्न भाषावाद आघात पहुंचा रहे हैं। लेखक इसका समाधान सुझाते हुए कहते हैं कि भारत में अनेक प्रादेशिक भाषाएँ हैं और प्रत्येक भाषा में अनेक सुंदर और आनन्द प्रदान करने वाली साहित्यिक कृतियाँ हैं। हमारी समस्या का बहुत हद तक समाधान हो सकता है यदि हम इन साहित्यिक कृतियों के सारतत्त्व से अन्य भाषा तथा भाषियों को परिचित करा सकें।
(स) लेखक के अनुसार भारतीय संस्कृति के समन्वय के लिए प्रत्येक प्रादेशिक भाषा की साहित्यिक कृतियों का अनुवाद करा कर उसे भारत की संघ-लिपि अर्थात देवनागरी लिपि में छपवाना चाहिए।