Hindi, asked by halo8502, 9 months ago

निम्नलिखित गद्यांश में नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
आप कहेंगे कि निन्दा के बाण से अपने प्रतिद्वन्द्वियों को बेधकर हँसने में एक आनन्द है और यह आनन्द ईर्ष्यालु व्यक्ति का सबसे बड़ा पुरस्कार है । मगर, यह हँसी मनुष्य की नहीं, राक्षस की हँसी होती है और यह आनन्द भी दैत्यों का आनन्द होता है ।
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(स) ईर्ष्यालु व्यक्ति का सबसे बड़ा पुरस्कार क्या है ?

Answers

Answered by vb624457
0

Answer:

स) प्रतिद्वंदियों को बेधकर आनंद पाना,यही आनंद उसका सबसे बड़ा पुरस्कार है।

Answered by bhatiamona
1

निम्नलिखित गद्यांश में नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार है:

(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।

प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के 'गद्य-खण्ड में संकलित एवं श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा लिखित 'ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से' नामक मनोवैज्ञानिक निबद्ध से उद्धृत है।  

पाठ का नाम 'ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से'  

पाठके लेखक का नाम है ,  श्री रामधारी सिंह 'दिनकर'  

(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

प्रस्तुत अंश में लेखक ने यह बताया है की प्रायः निन्दा करने वाला , अपने कटु वचनरूपी शब्दों से अपने सामने वाले को घायल कर हंसता है और आनन्दित होता है| वह समझता है कि उस ने निन्दा करके अपने दुश्मन को दूसरों की दृष्टि से नीचे गिरा दिया है और अपना स्थान दूसरों की दृष्टि में ऊँचा बना लिया है|  इसलिए वह प्रसन्न होता है और इसी प्रसन्नता को प्राप्त करना उसका लक्ष्य होता है , किंतु सच्चे अर्थ में ईष्र्यालु व्यक्ति की यह हंसी और यह क्रूर आनन्द उस में छिपे राक्षस की हंसी और आनन्द है| यह न तो मनुष्यता की हंसी है और न ही मानवता का आनन्द |

(स) ईर्ष्यालु व्यक्ति का सबसे बड़ा पुरस्कार क्या है ?

लेखक कहना चाहता है की ईर्ष्यालु व्यक्ति राक्षस के समान होता है|

ईर्ष्यालु व्यक्ति की हंसी और आनन्द सामान्य मनुष्य की हंसी और आनन्द के जैसी नहीं होती वरन| उसकी हंसी राक्षस की हंसी के समान और आनन्द दैत्यों के आनन्द के समान होता है|

Similar questions