निम्नलिखित गद्यांश में नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
चिन्ता को लोग चिता कहते हैं । जिसे किसी प्रचण्ड चिन्ता ने पकड़ लिया है, उस बेचारे की जिन्दगी ही खराब हो जाती है, किन्तु ईर्ष्या शायद चिन्ता से भी बदतर चीज है; क्योंकि वह मनुष्य के मौलिक गुणों को ही कुंठित बना डालती है ।
(अ) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(स) 1. ईर्ष्यालु और चिन्तातुर व्यक्ति में कौन अधिक बुरा है और क्यों ?
2. चिन्ता को लोग चिता क्यों कहते हैं ?
3. ईर्ष्या चिन्ता से भी बदतर चीज क्यों है ?
Answers
Answer:
स)ईष्यालु
२)चिंतित व्यक्ति अति शीघ्र मृत्यु की ओर अग्रसर हो जाता है।
उपर्युक्त गद्यांश में दिये गये प्रश्नों के उत्तर निम्नलिखित है—
Explanation:
(अ) सन्दर्भ: प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के गद्य-खण्ड में संकलित 'ईर्ष्या, तू न गयी मेरे मन से' नामक मनोवैज्ञानिक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक का नाम श्री रामधारी सिंह ' दिनकर ' हैं।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या: लेखक का कहना है कि चिन्ता को लोग चिता के समान जलाने वाली समझते हैं। चिता तो मृत देह जलाती है लेकिन चिन्ता से जीवित व्यक्ति ही जल जाता है। चिन्ता करने वाले मनुष्य का जीवन अत्यधिक कष्टदायी अवश्य होता है किन्तु ईर्ष्या मनुष्य के अंदर दया, प्रेम, उदारता जैसे मानवीय गुणों को ही नष्ट कर देती है। अतः ईर्ष्या, चिन्ता से भी अधिक हानिकारक होती है।
(स)
1. चिन्ता से मनुष्य का जीवन खराब होता है परन्तु ईर्ष्या से तो मनुष्य का मौलिक गुण ही समाप्त हो जाता है। अतः ईर्ष्यालु व्यक्ति अधिक बुरा है।
2. चिन्ता को चिता इसलिए कहा जाता है, क्यूंकि चिन्ता भी व्यक्ति को चिता के समान ही जला देती है।
3. चिंतित मनुष्य का जीवन कष्ट दायक अवश्य होता है परन्तु ईर्ष्या से तो मनुष्य का मानवीय गुण भी नष्ट हो जाता है जिसके बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ माना जाता है।