निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
1. मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एक कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै राम्।।
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1 सुर्योदय के समय जल में पडता प्रतिबिंब मानों निलमनि के समान जगमगाता हुआ दिखता है।
2 जगत मे जप-तप के द्वारा सभी पाप-दाग मिटाएं जा सकतें हैं।
3 ध्यान मुद्रा की माला, सिर का साफा, ललाट पर तिलक ये शरीर पर एक साथ कार्य नहीं करते हैं...जब व्यर्थ ही जगत को दिखाते हुए मन मस्त का सा दिखा करव्यर्थ का नासन करते हैं और राम नाम रटते हैं।
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1.इस पंक्ति में श्रीकृष्ण की तुलना नीलमणि पर्वत से की गयी है। उनके अलौकिक सौंदर्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो नीलमणि पर्वत पर प्रातः कालीन सूर्य की धूप फैली हो।
2.बिहारी जी ने इस पंक्ति में बताया है कि ग्रीष्म ऋतु की प्रचंडता से पूरा जंगल तपोवन बन गया है। इस मुसीबत की घड़ी में सब जानवरों की दुश्मनी खत्म हो गई है। साँप, हिरण और सिंह सभी गर्मी से बचाव के लिए मिल-जुलकर रहने लगे हैं| कवि ने शिक्षा दी है की हमें भी विपत्ति के घड़ी में मिल-जुलकर उससे निपटना चाहिए|
Explanation:
3.बिहारी का मानना है कि माला जपने और छापा-तिलक लगाने जैसे बाहरी आडम्बरों से ईश्वर प्राप्त नहीं होते। ये सारे काम व्यर्थ हैं। राम यानी ईश्वर का वास उस व्यक्ति के मन में होता है जिसका हृदय हृदय ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट, वासना आदि से मुक्त और स्वच्छ होता है|