Sociology, asked by AShiba4847, 1 year ago

निम्नलिखित के कारण दें
(क) बुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
(ख) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
(ग) रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी।
(घ) महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।

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Answered by nikitasingh79
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उत्तर :  

(क) बुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई‌:  

‘वुडब्लॉक या काठ की तख्ती’  वाली छपाई चीन में होती थी । मार्कोपोलो नामक एक महान खोजी यात्री काफी समय तक चीन में रहा। वह 1295 में वापस इटली लौटा और अपने साथ तख्ती की छपाई की तकनीक लाया। इस प्रकार 1295 के बाद यूरोप में भी छपाई की तकनीक अपनाई जाने लगे।

(ख) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की :  

मार्टिन लूथर जर्मनी का निवासी था। 1517 में उसने रोम की धार्मिक यात्रा की। यहां उसने पोप और चर्च की बुराइयां देखी। वापस आकर उसने इन बुराइयों के विरुद् सुधार आंदोलन आरंभ किया। इसी आंदोलन के परिणाम स्वरुप ईसाई धर्म की प्रोटेस्टेंट शाखा का प्रचलन हुआ। उसने जर्मन भाषा में बाइबल का अनुवाद किया। मार्टिन लूथर इसलिए मुद्रण के पक्ष में था क्योंकि यह किसी गलत परंपराओं का विरोध करने का सशक्त साधन था।इस माध्यम से अपने विचारों को थोड़े ही समय में कई लोगों तक पहुंचाया जा सकता था।उसने चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी 95 स्थापनाएं लिखी। इसकी छपी हुई एक प्रति विटेनबर्ग के गिरजाघर के दरवाजे पर टांगी गई। इसमें लूथर ने चर्च को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी थी। लूथर के लेखों के परिणाम स्वरुप चर्च का विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेंट लहर का उदय हुआ। इसके द्वारा किए गए न्यू टेस्टामेंट के अनुवाद की 5000 प्रतियां कुछ ही हफ्तों में बिक गई और 3 महीने के अंदर ही इसका दूसरा संस्करण निकालना पड़ा।मुद्रण की प्रशंसा करते हुए उसने कहा था मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है सबसे बड़ा उपहार है।

(ग) रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी :  

छपे हुए लोकप्रिय साहित्य के माध्यम से कम पढ़े लिखे लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए । उन्होंने बाइबल के नए अर्थ लगाने आरंभ कर दिए । अपने अर्थों के अनुसार उन्होंने ईश्वर तथा सृष्टि के बारे में ऐसे विचार प्रस्तुत किए जिनसे रोमन कैथोलिक चर्च क्रोधित हो उठा। धन विरोधी विचारों को दबाने के लिए इन्क्वीजींशन नामक धार्मिक संस्था ने धर्म विरोधियों को कठोर दंड दिए। एक किसान मेनिकियो के मामले में भी ऐसा ही हुआ। उसे मृत्युदंड दिया गया। प्रकाशकों तथा  पुस्तक विक्रेताओं पर भी धर्म विरोधी प्रचार को रोकने के उद्देश्य से प्रतिबंध लगाए गए। आखिर स्थिति यहां आ पहुंची की चर्च ने 1558 से अपने पास प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची रखनी आरंभ कर दी।

(घ) महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है :  

महात्मा गांधी ने यह शब्द 1922 में कहे थे। उस समय वह असहयोग आंदोलन के माध्यम से स्वराज की लड़ाई लड़ रहे थे। वह जानते थे कि अभिव्यक्ति तथा प्रेस की स्वतंत्रता किसी भी राष्ट्र की आत्मा होती है। इनके बिना कोई भी राष्ट्र जीवित नहीं रह सकता । ये स्वतंत्राएं लोगों में सामूहिकता अर्थात एकजुटता की भावना उत्पन्न करती है जिससे राष्ट्र का निर्माण होता है। ऐसा राष्ट्र ही विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने की शक्ति रखता है।  

आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।

इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न  

छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ-

(क) गुटेन्बर्ग प्रेस  

(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार  

(ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट

https://brainly.in/question/9630456

उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था

(क) महिलाएँ  

(ख) गरीब जनता

(ग) सुधारक

https://brainly.in/question/9629925

Answered by Anonymous
2

Explanation:

अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।

मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।

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