निम्नलिखित काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
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संदर्भ
प्रस्तुत काव्यांश 'केदारनाथ सिंह द्वारा लिखित 'बनारस' नामक कविता से लिया गया है।
केदारनाथ सिंह की कविता 'बनारस' में बनारस (वाराणसी) शहर की प्राचीनता, आध्यात्मिकता एवं भव्यता के साथ-साथ आधुनिकता का अद्भुत समन्वय स्थापित किया गया है।
व्याख्या
बनारस एक अत्यन्त प्राचीन नगरी है। पौराणिक ग्रंथों में बनारस को काशी नाम से संबोधित किया जाता है।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि बनारस में बसंत का आगमन अचानक होता है। बसंत के आगमन पर पूरा नगर बसंतमय हो जाता है। बसंत का प्रभाव दशाश्वमेध् घाट के पत्थरों पर भी दिखाई देने लगता है। बसंत के आगमन और लोगों के स्नान ध्यान, पूजा अर्चना से घाट का अंतिम पत्थर भी अपनी कठोरता छोड़ कर नरम हो जाता है। सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आँखो में नमी तथा भिखारियों की निराश आँखो में उत्साह एवं उनके खाली कटोरों में सिक्कों की चमक दिखाई देने लगती है। घाट पर आये श्रद्धालू भिखारियों के खाली कटोरों को दानस्वरूप कुछ न कुछ देकर भर देते है।