निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- यादें होत हैं गहरी नदी में उठा भँवर की तरह नसों में उतरती कड़वी दवा की तरह या खुद के भीतर छिपे बैठे साँप की तरह जो औचक्के में देख लिया करता है यादें होती हैं जानलेवा खुशबू की तरह प्राणों के स्थान पर बैठे जानी दुश्मन की तरह शरीर में धँसे उस काँच की तरह जो कभी नहीं दिखता पर जब तब अपनी सत्ता का भरपूर एहसास दिलाता रहता है यादों पर कुछ भी कहना खुद को कठघरे में खड़ा करना है पर कहना ज़रूरत नहीं, मेरी मजबूरी है। क) यादों को गहरी नदी में उठी भँवर की तरह क्यों कहा गया है? ख) यादों को जानी दुश्मन की तरह मानने का क्या आशय है? ग) शरीर में धँसे कांच से यादों का साम्य कैसे बिठाया जा सकता है? घ) आश्य स्पष्ट कीजिए- " यादों पर कुछ भी कहना खुद को कठघरे में खड़ा करना है।"
Answers
काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर निम्नलिखित हैं
Explanation:
(क) जिस प्रकार गहरी नदी में भंवर उठता है, तो सब उसमे समाहित हो जाता है। उसके अंदर कोई भी फंस कर रह जाता है। उसका बाहर निकलना असंभव हो जाता है। ऐसी ही यादें रुपी नदी में भंवर उठता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है। मनुष्य को सिवाय दुःख के कुछ भी नहीं मिलता है। मनुष्य उसमे उलझ कर रह जाता है। और उससे बाहर आना उसके लिए असंभव हो जाता है।
(ख) जब यादें बाहर आती हैं, तो मनुष्य को कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। निराशा तथा दुःख के भाव उसे घेर लेते हैं। जिससे तनाव पैदा होता है, जो एक जानी दुश्मन की तरह काम करता है।
(ग) जैसे शरीर में धंसा कांच रह - रह कर दर्द देता है और घाव से खून निकलता रहता है। ऐसे ही यादें मनुष्य को तकलीफ देती हैं। वह चैन व सुकून से रह नहीं पाता। अतः दोनों का साम्य इस तरह बिठाया गया है।
(घ) इसका आशय यह है कि हम यादों को कुछ कहने लायक नहीं होते हैं। वो जैसी भी हैं हमारी हैं। हम ही उन यादों में कहीं न कहीं शामिल हैं। अतः हम उन्हें भला बुरा कहते हैं , तो इसका आशय है कि हम स्वयं के लिए कह रहे हैं। तब हम स्वयं को दोषी बना देते हैं।